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गा० ५८] . प्रदेशसंक्रम-स्वामित्व-निरूपण
४०३ उक्कस्सपदेसग्गं सम्मामिच्छत्ते पक्खित्तं, तेणेव जाधे सम्मामिच्छत्तं सम्मत्ते संपक्खित्तं ताधे तस्स सम्मामिच्छत्तस्स उक्स्सओ पदेससंकमो।
२९. अणंताणुबंधीणमुक्कस्सओ पदेससंक्रमो कस्स १ ३०. सो चेव सत्तमाए पुडवीए णेरइओ गुणिदकम्मं सिओ अंतोमुहुत्तेणेव तेसिं चेव उक्कस्सपदेससंतकम्मं होहिदि त्ति उक्कस्सजोगेण उकस्ससंकिलेसेण च णीदो । तदो तेण रहस्सकाले सेसे सम्मत्तमुप्पाइयं । पुणो सो चेव सव्वलहुमणंताणुबंधीणं विसंजोएदुमाढत्तो । तस्स चरिमडिदिखंडयं चरिमसमयसंछुहमाणयस्स तेसिमुक्कस्सओ पदेससंकमो ।
३१. अट्टण्हं कसायाणमुक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? ३२. गुणिदकम्मंसिओ सबलहुमणुसगइमागदो अवस्सिओ खवणाए अब्भुद्विदो। तदो अट्ठण्हं कसायाणमपच्छिमट्ठिदिखंडयं चरिमसमयसंछुहमाणयस्स तस्स अट्ठण्हं कसायाणमुक्कस्सओ पदेससंकमो । उसने ही जिस समय सम्यग्मिथ्यात्वको सम्यक्त्वप्रकृतिमे प्रक्षिप्त किया, उस समय उसके सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमण होता है ॥२८॥
शंका-अनन्तानुबन्धी कषायोका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमण किसके होता है ? ॥२९॥
समाधान-वही सातवी पृथिवीका गुणितकांशिक नारकी-जब कि अन्तर्मुहूर्तसे ही उसके उन ही अनन्तानुबन्धी कषायांका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होगा-उस समय उत्कृष्ट योग
और उत्कृष्ट संक्लेशसे परिणत हुआ। तदनन्तर उसने लघुकाल शेष रहनेपर विशुद्धिको पूरित करके सम्यक्त्वको उत्पन्न किया । पुनः वही सर्वलघुकालसे अनन्तानुबन्धी कपायोके विसंयोजनके लिए प्रवृत्त हुआ। उसके चरम स्थितिखंडके चरम समयमे संक्रमण करनेपर पर अनन्तानुबन्धी कषायोका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमण होता है ॥३०॥
शंका-आठो मध्यम कषायोका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमण किसके होता है ? ॥३१॥
समाधान-वही पूर्वोक्त गुणितकर्माशिक नारकी सर्वलघुकालसे मनुष्यगतिमे आया और आठ वर्षका होकर चारित्रमोहकी क्षपणाके लिए अभ्युद्यत हुआ। तदनन्तर आठो कषायोके अन्तिम स्थितिखंडको चरम समयमे संक्रमण करनेवाले उसके आठो मध्यम कषायोका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमण होता है ॥३२॥
१ त जहा-जेण गुणिदकम्मसिएग मणुसगइमागतूण सबलहु दसणमोहवखवणाए अन्मुट्ठिदेण जहाकममधापवत्तापुवकरणाणि वोलिय अणियट्टीकरणद्धाए सखेजदिभागसेसे मिच्छत्तस्स उक्कस्सपदेसग्ग सगासखेजधागभूदगुणसेदिणिजरासहिदगुणसकमदव्वपरिहीण सव्वसकमेण सम्मामिच्छत्ते सपक्खित्त तेणेव मिच्छत्तक्कस्सपदेससकमसामिएण जाधे सम्मामिच्छत्त सम्मत्त पविखत्त, ताधे तस्स सम्मामिच्छत्तविसयो उक्कस्सओ पदेससकमो होइ त्ति एसो सुत्तत्यसंगहो । जनध०
२ एवं विसजोएमाणस तस्स णेरइयस्त चरिमठिदिखंडय चरिमसमयसछुहमाणयस्स तेसिमणताणुबधीणमुक्कस्सओ पदेससकमो होदि; तत्थ सम्बसकमेणाणताणुबधिदव्वस्स कम्मछिदिअभंतरसंगलिदस्स थोवूणस्स सेसफसायाणमुवरि सकमतस्सुक्करसभावसिद्धीए विरोहाभावादो । जयध०