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कसाय पाहुड सुन्त
वरि अवत्तव्वसंकामयाणमंतरमुकस्सेण संखेजाणि वस्त्राणि ।
४००. अप्पा बहुअं । ४०१ सव्वत्थोवा मिच्छत्तस्स अप्पयरसंकामया । ४०२, भुजगारसंकामया असंखेजगुणा । ४०३. अवद्विदसंकामया संखेज्जगुणा । ४०४. सम्मत्त- सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा अप्पयरसंकामया । ४०५. अवत्तव्वसंकामया असंखेज्जगुण । ४०६. अवट्ठिद संकामया असंखेज्जगुणा । ४०७, सेसाणं कम्माणं सव्वत्थोवा अवतव्यसंकामय । ४०८ अप्पयरसंकामया अनंतगुणा । ४०९. भुजगार संकामया असंखेज्जगुणा । ४१०. अवद्विदसं कामया संखेज्जगुणा " । भुजगार संकमो ति समत्तमणिओगद्दारं ।
[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार
४११. पदणिक्खेवेत्ति तिण्णि अणिओगद्दाराणि । ४१२. तं जहा । ४१३. परूवणा सामित्तमप्पाचहुअं च । ४१४. परूवणाए सव्वेसिकम्माणमत्थि उक्तस्तिया संक्रामकोका उत्कृष्ट अन्तरकाल संख्यात वर्ष है ।। ३९२-३९९ ।।
चूर्णिस.. ० - अब भुजाकारादि- संक्रामक के अल्पबहुत्वको कहते है - मिथ्यात्वके अल्पतर-संक्रामक सबसे कम होते हैं । भुजाकार - संक्रामक असंख्यातगुणित होते है । अवस्थित संक्रामक संख्यातगुणित होते है । सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिध्यात्व के अल्पतर-संक्रामक सबसे कम हैं । अवक्तव्यसंक्रामक असंख्यातगुणित हैं । अवस्थित - संक्रामक असंख्यात - गुणित हैं । शेप कर्मों के अवक्तव्यसंक्रामक सबसे कम हैं । अल्पतर - संक्रामक अनन्तगुणित हैं | भुजाकार-संकामक असंख्यातगुणित हैं और उनसे अवस्थित संक्रामक संख्यातगुणित है । ।४००-४१०॥
इस प्रकार भुजाकार - संक्रमण नामक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
चूर्णिसू० - पदनिक्षेप नामक जो अधिकार है, उसमे तीन अनुयोगद्वार हैं । वे इस प्रकार हैं- प्ररूपणा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व | प्ररूपणाकी अपेक्षा सर्व कर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है, उत्कृष्ट हानि होती है और उत्कृष्ट अवस्थान होता है । इसी प्रकार सर्व
१ कुदो, वासपुधत्तमेत्तु कस्सतरेण विणा उवसमसे दिविसयाणमवत्तव्वस कामयाणमेदेसि सभवाणुत्रलभादो । जयध
२ कुदो, एयसमयसचिदत्तादो | जयध०
२ कुदो; अतोमुहुत्तमेत्तभुजगार कालव्भतरसंभवग्गहणादो | जयध ०
४ कुदो, भुजगारकालादो अवदिकालस्य सखेजगुणत्तादो | जयघ
५ कुदो, दसणमोहक्खवणजीवाणमेव तदप्पयरभावेण परिणदाणमुवल भादो । जयध०
६ कुदो, पलिदोवमा सखे जभाग मेत्तणिस्सतकम्मियजीवाणमेयसमयम्मि सम्मत्तग्गहणसभवाटो । जयध० ७ कुदो; सक्रमपाओग्गतदुभयसतकम्मियमिच्छा इट्ठि सम्माइीण सव्वे सिमेवग्गहणादो | जयध ८ कुदो; वारसकसाय णवणोकसायागमवत्तव्वसकामयभावेण संखेनाणमुवसामयजीवाण परिणमणदादो | अतावधीण पि पलिदोवमासखेजभागमेत्तजीवाण तव्भावेण परिणदाणमुवलभादो | जयध०
९ कुदो; सव्व जीवाणमसखेज भागपमाणत्तादो | जयघ०
१० कुदो; भुजगारकालादो अवट्ठिदकालस्स तावदिगुणत्तोवलभा दो । जयघ०