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गा० ५८] अनुभागसंक्रम-भुजाकार-अन्तर-निरूपण
३८१ ३८५. उक्कस्सेण आवलियाए असंखेन्जदिभागो' । ३८६. एवं सेसाणं कम्माणं । णवरि अवत्तव्यसंकामयाणमु कस्सेण संखेज्जा समया ।
३८७. एत्तो अंतरं । ३८८. मिच्छत्तस्स णाणाजीवेहि भुजगार-अप्पयरअवद्विदसंकामयाणं णत्थि अंतरं । ३८९. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमप्पयरसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होइ ? ३९०. जहण्णेण एयसमओ। ३९१ उक्कस्सेण छम्मासा। ३९२. अवट्ठिदसंकामयाणं णत्थि अंतरं। ३९३. अवत्तव्यसंकामयंतरंजहण्णेण एयसमओ । ३९४. उकस्सेण चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । ३९५. अणंताणुबंधीणं भुजगार-अप्पयरअवडिदसंकामयाणं णत्थि अंतरं । ३९६. अवत्तव्यसंकामयंतरं जहण्णेण एयसमओ । ३९७. उक्कस्सेण चउवीसमहोरत्ते सादिरेये । ३९८. एवं सेसाणं कम्माणं। ३९९.
__समाधान-जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल आवलीका असंख्यातवाँ भाग है ॥३८४-३८५।।
चूर्णिसू०-इसी प्रकार शेप कर्मों के भुजाकारादि-संक्रामकोका काल जानना चाहिए । विशेपता केवल यह है कि उनके अवक्तव्य-संक्रामकोका उत्कृष्टकाल संख्यात समय है ।।३८६॥
चूर्णिसू०-अब इससे आगे नाना जीवोकी अपेक्षा भुजाकारादि-संक्रामकोका अन्तर कहते है-नाना जीवोकी अपेक्षा मिथ्यात्वके भुजाकार-संक्रामक, अल्पतर-संक्रामक और अवस्थित-संक्रामकोका अन्तर नहीं है ॥३८७ ३८८।।
__ शंका-सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतर-संक्रामकोका अन्तरकाल कितना है ? ॥३८९।।
समाधान-जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह मास है ॥३९०-३९१॥
चूर्णिसू०-उक्त दोनो कर्मोंके अवस्थित-संक्रामकोका अन्तर नहीं होता है। इन्हीं दोनो कर्मोंके अवक्तव्य-संक्रामकोका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ अधिक चौबीस अहोरात्र (दिन-रात) है । अनन्तानुबन्धी कषायोके भुजाकार-संक्रामक, अल्पतरसंक्रामक और अवस्थित-संक्रामकोका अन्तर नहीं है। अनन्तानुबन्धी कपायोके अवक्तव्य-संक्रामकोका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ अधिक चौबीस अहोरात्र है। इसी प्रकारसे शेष कर्मोंके भुजाकारादिसंक्रामकोके अन्तरको जानना चाहिए। विशेषता केवल यह है कि शेष कर्मोंके अवक्तव्य
१ तदुवक्कमणवाराणमुक्कस्सेणेत्तियमेत्ताणमुवलमादो । जयध० २ कुदो, दसणमोहक्खवयाण जहणुक्कस्सविरहकालस्स तप्पमाणत्तोवएसादो ! जयध०
३ कुदो णिस्सतकम्मियमिच्छाइट्ठीणमुवसमसम्मत्तग्गहणविरहकालस्स जहण्णुक्कस्सेण तप्पमाणत्तोवएसादो | जयध०
४ कुदो, तव्विसेसियजीवाणमाण तियदसणादो । जयध० ५ अणताणुबधिविसजोयणाण च सजुत्ताण पि पयदंतरसिद्धीए वाहाणुवलभादो । जयध०