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गा० ५८]
अनुभागसंक्रम-भुजाकार-भंगविचय-निरूपण ३५७. अवत्तव्यसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होइ ? ३५८. जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । ३५९. उकस्सेण उबड्डपोग्गलपरियट्ट ।
३६०. सेसाणं कम्माणं मिच्छत्तभंगो। ३६१. णवरि अवत्तव्यसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होइ ? ३६२. जहण्णेण अंतोमुहुत्तं । ३६३. उक्कस्सेण उवड्डपोग्गलपरियट्ट । ३६४. अणंताणुबंधीणमवद्विदसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होइ ? ३६५. जहण्णेण एयसमओ । ३६६. उक्कस्सेण वे छावहिसागरोवमाणि सादिरेयाणि ।
३६७. णाणाजीवेहि भंगविचओ। ३६८. मिच्छत्तस्स सव्वे जीवा भुजगारसंकामया च अप्पयरसंकामया च अवट्ठिदसंकामया च । ३६९. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं णव भंगा। ३७०. सेसाणं कम्माणं सव्वजीवा भुजगार-अप्पयर-अवविदसंका
शंका-इन्ही दोनो कर्मोंके अवक्तव्यसंक्रामकोका अन्तरकाल कितना है ? ॥३५७॥
समाधान-जघन्य अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्धपुद्गलपरिवर्तन है ॥३५८-३५९।।
चूर्णिसू०-शेप सोलह कषाय और नव नोकपाय इन पच्चीस कर्मोंके भुजाकारादि संक्रामकोका अन्तरकाल मिथ्यात्वके भुजाकारादि संक्रामकोके अन्तरकालके समान जानना चाहिए । विशेषता केवल यह है कि उक्त कर्मोंके अवक्तव्यसंक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्धपुद्गलपरिवर्तन है ।।३६०-३६३॥
शंका-अनन्तानुबन्धी कषायोके अवस्थितसंक्रामकोका अन्तरकाल कितना है ? ॥३६४॥
समाधान-जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ अधिक एक सौ बत्तीस सागरोपम है ॥३६५-३६६।।
चूर्णिसू०-अब नाना जीवोकी अपेक्षा मिथ्यात्वादि कर्मोंके भुजाकारादि-संक्रामकोका भंगविचय कहते हैं-मिथ्यात्वके भुजाकार-संक्रामक, अल्पतर-संक्रामक और अवस्थितसंक्रामक सर्व जीव होते है। सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके मुजाकारादि संक्रामकोके नौ भंग होते है । शेष पच्चीस कर्मोंके सर्व जीव भुजाकार-संक्रामक, अल्पतर-संक्रामक और अवस्थित-संक्रामक होते हैं । इस ध्रुवपदके साथ कदाचित् अनेक जीव भुजाकारादि-संक्रामक
१ त कथ ? पढमसम्मत्तुप्पत्तिविदियसमए अवत्तव्वसकम कादूणावट्ठिदसकमेणतरिदत्स सव्वलहुमुवेल्लणाए णिस्सतीकरणाण तर पडिवण्णसम्मत्तस्स विदियसमए लद्धमतर होइ । जयध०
२ त जहा-पढमसम्मत्तुप्पायणविदियसमए अवत्तव्य कादूणतरिय उवढ्ढपोग्गलपरियट्टावसाणे गहिदसम्मत्तस्स विदियसमए लद्धमतर होइ । जयध०
३ बारसकसाय णवणोकसायाण सम्वोवसामणादो परिवदिय अवत्तव्वसकम कादूणतरिय पुणोवि सव्वलहुमुवसमसेढिमारुयि सव्वोवसामण काऊण परिवदमाणयस्स पढमसमयम्मि लद्धमतर होइ । अणताणुबधीण विसजोयणापुव्वसजोगेणादि कादूण पुणो वि अतोमुहुत्तेण विसजोजिय सजुत्तरस लद्धमतर वत्तव्य ।
जयध०
४ कुदो, तदवट्टिदस कामयाणं धुवत्तेण अप्पयरावत्तव्बयाण भयणिजत्तदसणादो । जयध०