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गा० २३ ) चतुर्विध-बन्ध-संसूचन
२४९ ३. एदीए गाहाए वंधो च संकमो च सूचिदो होइ । ४. पदच्छेदो । ५ तं जहा । ६. 'कदि पयडीओ बंधइ' त्ति पयडिबंधो । ७. 'द्विदि-अणुभागे' त्ति द्विदिबंधो अणुभागबंधो च । ८. 'जहण्णमुक्कस्सं त्ति पदेसबंधो । ९. 'संकामेदि कदि वा' त्ति पयडिसंकमो च द्विदिसंकमो च अणुभागसंकमो च गहेयव्यो। १०. 'गुणहीणं वा गुणविसिटुं' ति पदेससंकमो सूचिदो। ११. सो पुण पयडि-द्विदि-अणुभाग-पदेसबंधो बहुसो परूविदो।
बंधग-अत्याहियारो समत्तो । विशेषार्थ-यह सूत्र-गाथा प्रश्नात्मक है और किस प्रश्नसे क्या सूचित किया गया है, इसका स्पष्टीकरण आगे चूर्णिकार स्वयं ही कर रहे है।
चूर्णिसू०-इस गाथाके द्वारा बन्ध और संक्रम ये दोनो सूचित किये गये है । गाथाका पदच्छेद अर्थात् पदोका पृथक् पृथक् अर्थ इस प्रकार है-'कितनी प्रकृतियोको बॉधता है', इस पदसे प्रकृतिबन्ध सूचित किया गया है । 'स्थिति और अनुभाग' इस पदसे स्थितिवन्ध और अनुभागबन्ध सूचित किये गये है । 'जघन्य और उत्कृष्ट' इस पदसे प्रदेशबन्ध सूचित किया गया है । 'कितनी प्रकृतियोका संक्रमण करता है' इस पदके द्वारा प्रकृतिसंक्रम, ' स्थितिसंक्रम और अनुभागसक्रमको ग्रहण करना चाहिए । गाथाके 'गुणहीन और गुणविशिष्ट' इस अन्तिम अवयवसे प्रदेशसंक्रम सूचित किया गया है । इनमेसे वह प्रकृतिवन्ध, स्थितिवन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध बहुत वार प्ररूपण किया गया है । ॥३-११॥
विशेषार्थ-कसायपाहुडके पन्द्रह अर्थाधिकारोमेसे बन्धनामक चतुर्थ और संक्रमणनामक पंचम अर्थाधिकारका निरूपण 'कदि'पयडीओ बंधदि' इस पांचवी मूलगाथाके द्वारा किया गया है । वन्धके चार भेद है-प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशवन्ध । इसी प्रकार संक्रमणके भी चार भेद है-प्रकृतिसंक्रमण, स्थितिसंक्रमण, अनुभागसंक्रमण और प्रदेशसंक्रमण । गाथाके किस पदसे बन्ध और संक्रमणके किस भेदकी सूचना की गई है, यह चूर्णिकारने स्पष्ट कर दिया है । पुनः बन्धके चारो भेदोका वर्णन करना क्रम-प्राप्त था, किन्तु चूर्णिकारने उनका कुछ भी वर्णन न करके एकमात्र ग्यारहवे सूत्र-द्वारा इतना ही निर्देश किया है कि वह चारो प्रकारका बन्ध 'बहुशः प्ररूपित है'। जिसका अभिप्राय यह है कि ग्रन्थान्तरोमे इन चारो प्रकारके वन्धोका बहुत विस्तारसे वर्णन किया गया है, इस कारण मैं उनका यहॉपर कुछ भी वर्णन नही करूँगा । इस सूत्रकी व्याख्या करते हुए जयधवलाकार लिखते है कि इसलिए 'महावन्ध' के अनुसार यहॉपर चारो प्रकारके वन्धोकी प्ररूपणा करनेपर वन्ध-नामक चौथा अर्थाधिकार समाप्त होता है।
इस प्रकार वन्ध-नामक चौथा अर्थाधिकार समाप्त हुआ।
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