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गा० ५८ ]
अनुभागसंक्रम-अर्थपद-निरूपण १३. जहण्णओ णिक्खेयो अणंतगुणो'। १४. जहणिया अइच्छावणा अणंतगुणा । १५. उक्कस्सयमणुभागकंडयमणंतगुणं । १६. उक्कस्सिया अइच्छावणा एगाए वग्गणाए ऊणिया । १७. उक्कस्सओ णिक्खेवो विसेसाहियो । १८. उकस्सओ वंधो विसेसाहिओं।
१९. उक्कड्डणाए परूवणा। २०. चरिमफद्दयं ण उक्कड्डिजदि । २१. दुचहानिस्थानान्तर-सम्बन्धी स्पर्द्धक सबसे कम है। इनसे जघन्य निक्षेप अनन्तगुणित है । जघन्य निक्षेपसे जघन्य अतिस्थापना अनन्तगुणी है । जघन्य अतिस्थापनासे उत्कृष्ट अनुभागकांडक अनन्तगुणा है । उत्कृष्ट अनुभागकांडकसे उत्कृष्ट अतिस्थापना एक वर्गणासे कम है। अर्थात् उत्कृष्ट अतिस्थापनासे उत्कृष्ट अनुभागकांडक एक वर्गणामात्रसे अधिक है। उत्कृष्ट अनुभागकांडकसे उत्कृष्ट निक्षेप विशेष अधिक है। उत्कृष्ट निक्षेपसे उत्कृष्ट बन्ध विशेष अधिक है ॥११-१८॥
विशेषार्थ-जिस स्थलपर प्रथम स्पर्धककी आदि वर्गणा अवस्थित विशेष हानिसे जाती हुई दुगुण-हीन हो जाती है, उस अवधि-परिच्छिन्न अध्वानको प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर कहते हैं । इस प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरमे अनन्त स्पर्धक होते है, जिनका कि प्रमाण अभव्योके प्रमाणसे भी अनन्तगुणा है। फिर भी वह आगे कहे गये जघन्य निक्षेपादिके प्रमाणकी अपेक्षा सबसे कम है।
चूर्णिसू०-अब उत्कर्षणा या उद्वर्तनारूप संक्रमणकी प्ररूपणा की जाती हैअन्तिम स्पर्धक उत्कर्षित नहीं किया जा सकता। द्विचरमस्पर्धक भी उत्कर्षित नहीं किया
१ कुदो ! तत्थाणताणमणुभागपदेसगुणहाणीण सभवादो । जयध० २ कुदो ? तत्तो वि अगतगुणाणि गुणहाणिठाणतराणि विसईकरिय पयत्तादो । जयध०
३ कुदो ? उक्कस्साणुभागसतकम्मरस अणताण भागाण उकस्साणुमागखडयसरूवेण गहणोवलं. भादो । जयध०
४ चरिमवग्गणपरिहोणुक्कस्साणुभागकडयपमाणत्तादो। त कध? उक्कस्साणुभागखडए आगाइदे दुचरिमादिहेमिफालोसु अतोमुहुत्तमेत्तीसु सव्वत्थ जण्णाइच्छावणा चेव पुवुत्तपरिमाणा होइ, तक्काले वाघादाभावादो। पुणो चरिमफालिपदणसमकाल चरिमफद्दयचरिमवग्गणाए उकस्साइच्छावणा होइ, णिरुद्धचरिमवग्गण मोत्तूणाणुभागकडयस्सेव सव्वस्स तत्थाइच्छावणासरूवेण परिणमणदसणादो। एदेण कारणेण उक्कस्साइच्छावणा उकसाणुभागखडयादो एगवग्गणामेत्तेण ऊणि या होइ । त पि तत्तो एयवग्गणामेत्तेणभहियमिदि सिद्ध । जयघ०
५ उकस्साणुभाग बधियूणावलियादीदस्स चरिम कद्दयचरिमवग्गणाए ओकड्डिज्जमाणाए रूवाहियजहण्णाहच्छावणापरिहीणो सव्वो चेवाणुभागपत्थारो उक्कस्सणिक्खेवसरूवेण लभइ । तदो घादिदावसेसम्मि रूवाहियजहण्णाइच्छावणामेत्त सोहिय सुद्धसेसमेत्तण उक्तस्त्राणुमागकडयादो उक्कत्सणिक्खेवो विसेसाहियो त्ति घेत्तव्यो । जयध० ६ केत्तियमेत्तण १ रूवाहियजहण्णाइच्छावणामेत्तेण । जयध०
७ चरमं णोव्वट्टिजड जावाणंताणि फड्डगाणि तओ। ___ उस्मक्किय उक्कड्ढइ एवं ओवट्टणाईओ ॥७॥ कम्मप० उद्वर्तनापवर्त० ८ कुदो; उवरि अइच्छावणाणिखेवाणमसभवादो | जयध०