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गा० ५८ ]
अनुभाग संक्रम-काल-निरूपण
अंतोमुहुत्तं । ७७. उकस्सेण वे छावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । ७८. अणुक्कस्साभागसंकामओ केवचिरं कालादो होदि १ ७९. जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
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८०.
तो जीवेण कालो जहण्णओ ८१. मिच्छत्तस्स जहण्णाणुभाग संकामओ केवचिरं कालादो होदि १ ८२. जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं । ८३. अजहण्णाणुभागसं कामओ केवचिरं कालादो होदि ९ ८४. जहणेण अंतोमुहुत्तं । ८५ उक्कस्सेण असंखेजा लोगा । ८६. एवमडकसायाणं । ८७. सम्मत्तस्स जहण्णाणुभागसंकामओ
समाधान- इन दोनो कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमणका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ अधिक एक सौ बत्तीस सागरोपम है ॥७६-७७॥
शंका- इन्ही दोनो कर्मोंके अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रमणका कितना काल है ? ॥ ७८ ॥ समाधान - उक्त दोनो कर्मोंके अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रमणका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥७९॥
चूर्णिसू० - अब इससे आगे मिथ्यात्व आदि कर्मोंके अनुभागसंक्रमणका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल कहते है ॥ ८० ॥
शंका- मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागसंक्रमणका कितना काल है ? ॥ ८१ ॥ समाधान-मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागसंक्रमणका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्तप्रमाण है ॥ ८२ ॥
शंका- मिथ्यात्व के अजघन्य अनुभागसंक्रमणका कितना काल है ? ॥ ८३॥ समाधान-मिथ्यात्वके अजघन्य अनुभागसंक्रमणका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकके जितने प्रदेश हैं, उतने समय-प्रमाण है ॥ ८४-८५ ॥ चूर्णिसू० - इसी प्रकार आठ मध्यमकषायोके जघन्य और अजघन्य अनुभागसंक्रमणका काल जानना चाहिए ॥ ८६ ॥ शंका-सम्यक्त्वप्रकृतिके जघन्य अनुभागसंक्रमणका कितना काल है ? ॥८७॥
१ तं जहा - एकोणिस्सत कम्मियमिच्छा इट्ठी पढमसम्मत्तं पडिवनिय सम्माइद्विपदमसमए मिच्छत्ताणुभाग सम्मत्तसम्मा मिच्छत्तसरूवेण परिणमाविय विदियसमयप्पहुडि तदुक्कस्साणुभाग सकामओ होदूण सव्व लहु दंसणमोहक्खवण पद्मविय पढमाणुभागखडयं घादिय अणुक्कस्साणुभागसकामओ जादो । लद्धो सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्साणुभागस कामय जहण्ण कालो अतोमुहुत्तमेत्तो । जयध०
२ त कथ १ एक्को णिस्सतकम्मियमिच्छा ही सम्मत्त घेत्तणुक्कस्साणुभागसकामओ जादो । तदो कमेण मिच्छत्त गतूण पलिदोवमस्स असखैजदिभागमेत्तमुनवेल्लणाएं परिणमिय पुन्य व सम्मत्त घेत्तूण विदियछावट्ठि परिभमिय तदवसाणे मिच्छत्त पडिवष्णो । सव्वुक्कस्सेणुव्वेल्लण कालेन सम्मत सम्मामिच्छत्ताणि उव्वेल्लिदूण असकामगो जादो । लद्धो तीहि पलिदोवमस्स असखेज दिभागेहि अव्भहियवेछावद्रिसागरोवममेत्तोपयदुक्कस्सकालो | जयध०
३ एयवार हदसमुप्पत्तियपाओग्गपरिणामेण परिणदस्स पुणो सपरिणामेसु उकसावट्ठाण का असखेजलोगमेत्तो होइ । जयध०