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कसाय पाहुड सुत्त
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[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार जहण्णादो अजहण्णमणंत गुणव्भहिये । १५६. अट्टहं कम्माणं जहणं वा अजहणं चा संकामेदि । १५७, जहण्णादो अजहण्णं छट्टाणपदिदं । १५८. सेसाणं कम्माणं णियमा अजहणं । १५९. जहण्णादो अजहष्णमणंतगुणन्महियं । १६० एवमदुकसायाणं । १६१. सम्मत्तस्स जहणाणुभागं संकार्मेतो मिच्छत्त सम्मामिच्छत्त-अनंताणुबंधी मकम्मसि । १६२. सेसाणं कम्माणं णियमा अजहणणं संकामेदि । १६३. जहण्णादो अजहण्णमणंतगुणन्भहियं । १६४. एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि । णवरि सम्मत्तं मिध्यात्वके जघन्य अनुभाग-संक्रमणसे अजघन्य अनुभागसंक्रमण अनन्तगुणा अधिक होता है । मिथ्यात्व के जघन्य अनुभागका संक्रमण करनेवाला जीव आठ मध्यम कपायरूप कर्मों के जघन्य अनुभागका भी संक्रमण करता है और अजघन्य अनुभागका भी संक्रमण करता । यह जघन्य अनुभागसे अजघन्य अनुभाग-संक्रमण पट-स्थान - पतित वृद्धिरूप होता है । अर्थात् कहीपर जघन्य अनुभागसे अनन्तभाग अधिक, कहींपर असंख्यातभाग अधिक, कहीं पर संख्यात्तभाग अधिक, कहींपर संख्यातगुण अधिक, कहीं पर असंख्यातगुण अधिक और कहीपर अनन्तगुण अधिक जघन्य अनुभागका संक्रमण करता है । मिध्यात्वके जघन्य अनुभागका संक्रमण करनेवाला शेप कर्मों के अजघन्य अनुभागका नियमसे संक्रमण करता है । यह जघन्य अनुभागसंक्रमणसे अजघन्य अनुभागसंक्रमण अनन्तगुणा अधिक होता है । इसी प्रकार मिध्यात्वके जघन्य अनुभागसंक्रमणके समान आठ मध्यम कपायोके जघन्य अनुभागसंक्रमणका सन्निकर्ष जानना चाहिए ।। १५३-१६०।।
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चूर्णिसू० - सम्यक्त्वप्रकृति के जघन्य अनुभागका संक्रमण करनेवाला जीव मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुवन्धी कपायोकी सत्ता से रहित होता है । सम्यक्त्वप्रकृति के जघन्य अनुभागका संक्रमण करनेवाला जीव शेष वारह कपाय और नव नोकपाय, इन उन्नीस कर्मों के अजघन्य अनुभागका नियमसे संक्रमण करता है । यह जघन्य अनुभागसंक्रमणसे अजघन्य अनुभागसंक्रमण अनन्तगुणा अधिक होता है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वके जवन्यानुभागसंक्रमणका भी सन्निकर्ष जानना चाहिए । विशेषता केवल यह है कि
१ कुदो, मिच्छत्तेण समाणसामियत्ते वि विसेसपच्चय वसे णेदे सिमणुभागस्स तत्थ जद्दण्णाजण्णभावसिद्धीए विरोहाभावादो । जयध०
२ एत्थ छाणपदिदमिदि वुत्त े कत्थ वि जहण्णादो अणतभागन्महिय, कत्थवि असखेजभागमहिय, कत्थवि सखेजभागव्भद्दियं, कत्थ वि सखेजगुणव्भहिय, कत्थ वि असखेजगुणभहिय अणतगुणमहियं च जहणाणुभाग सकामेदित्ति घेत्तव्व; अतरगपञ्चयवसेण जहणभावपाओग्गविसए विपयदवियप्पाणमुप्पत्तीए पडिवधाभावादो । जयघ०
३ कुदो; एदेसिमविणा से सम्मत्तजहण्णागुभागसकमुप्पत्तीए विपडिसिद्धत्तादो | जयध०
४ कुदो, सुमहदसमुप्पत्तियकम्मेण चरित्तमोहक्खवणाए च लढजण्णभावार्ण तेसिमेत्थ जहणभावाभादो | जयध०
५ कुदो; अठकसायागं हदसमुप्पत्तियजहण्णाणुभागादो सेसक साय णोकसायाण पिसत्रणाए जणिदजहष्णागुभागसक्रमादो एत्थतगतदणुभागसमस्त तहाभावसिद्धीए विप्पडिसेद्दाभावादो | जयध०