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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अधिकार मेदि त्ति एस अबट्ठिदसंकमो । २९७. ओसका विदे असंकमादो एण्हि संकामेदि त्ति एस अवत्तव्यसंकमो।
२९८ एदेण अट्ठपदेण सामित्तं । २९९. मिच्छत्तस्स भुजगारसंकामगो को होइ ? ३००. मिच्छाइट्ठी अण्णदरो । ३०१. अप्पदर-अवद्विदसंकामओ होइ ? ३०२. अण्णदरो । ३०३. अवत्तव्यसंकामओ णत्थेि । ३०४. एवं सेसाणं कम्माणं सम्मत्तसम्मामिच्छत्त वजाणं। ३०५. णवरि अवत्तव्यगो च अस्थि । ३०६. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं भुजगारसंकामओ णत्थि । ३०७. अप्पदर-अवत्तव्यसंकामगो को होइ ? है। अनन्तर-व्यतिक्रान्त समयमे जितने अनुभागस्पर्धकोका संक्रमण किया है, उतने ही स्पर्धः कोंका वर्तमान समयमे संक्रमण करता है, यह अवस्थितसंक्रमण है । अनन्तर-व्यतीत समयमें असंक्रमणसे अर्थात् कुछ भी अनुभागस्पर्ध कोंका संक्रमण न करके इस वर्तमान समयमें स्पर्धकोका संक्रमण करता है, यह अवक्तव्यसंक्रमण है ॥२९१-२९७।।
चूर्णिमू०-इस अर्थपदके द्वारा भुजाकार आदि संक्रमणोका स्वामित्व कहते है ॥ २९८ ॥
• शंका-कौन जीव मिथ्यात्वके अनुभागका भुजाकारसंक्रमण करता है ? ॥२९९।।
समाधान-चारो गतियोमेसे कोई भी एक मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्वके अनुभागका भुजाकारसंक्रमण करता है ।।३००।
शंका-मिथ्यात्वके अनुभागका अल्पतर और अवस्थित संक्रमण कौन जीव करता है ? ।।३०१।।
समाधान-अन्यतर अर्थात् सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि कोई एक जीव मिथ्यात्वके अनुभागका अल्पतर और अवस्थितसंक्रमण करता है ॥३०२।।
- चूर्णिसू०-मिथ्यात्वके अनुभागका अवक्तव्य-संक्रमण नहीं होता है। इसी प्रकार मिथ्यात्वके समान ही सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर शेष कर्मोंके भुजाकारादि संक्रमणाके स्वामित्वको जानना चाहिए । विशेषता केवल यह है कि शेप कर्मोंका अवक्तव्यसंक्रमण होता है। सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका भुजाकारसंक्रमण नहीं होता है ॥३०३-३०६॥
१ अनन्तरव्यतिक्रान्तसमये वर्तमानसमये च तावतामेव स्पर्धकानां सक्रमोऽवस्थितसक्रम इति यावत् । जयध
२ ओसक्काविटे अणतरहेट्ठिमसमए अतंकमादो संकमविरहलक्खणादो अवस्थाविसेसादो एण्हिमिदाणि वट्टमाणसमए सकामेदि त्ति सकमपजाएण परिणामेदि त्ति एस एवंलक्खणो अवत्तवसम्मो । असकमादो जो सकमो सो अवत्तवसंकमो त्ति भावत्यो । जयध०
३ कुदो मिच्छत्तस्स सव्वकालमसंकमादो सकमसमुप्पत्तीए अणुवलभादो । जयध०
४ बारसमसायाणवणोकसायाणमुवसमसेढीए अणताणुवधीण च विसजोषणापुव्वसजोगे अवत्तव्वसकमदसणाटो । तटो बारसकसाय-णवणोकसायाण अवत्तव्यसंकामओ को हो ? विसजोयणादो संजुत्तो होदूणावलियादिक्कतो त्ति सामित्त कायव्यमिदि । जयध०
५ कुदो; तदणुमागत्स वद्विविरहेणावट्टिदत्ताटो । जयध