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गा० ५८ ) अनुभागसंक्रम-भुजाकार-अर्थपद-निरूपण
२८७. एइदिएसु सव्वत्थोवो सम्मत्तस्स जहण्णाणुभागसंकमो । २८८. सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागसंकमो अणंतगुणो । २८९. हस्सस्स जहण्णाणुभागसंकमो अणंतगुणो' । २९०. सेसाणं जहा सम्माइटिबंधे तहा काययो ।
२९१. भुजगारे त्ति तेरस अणिओगद्दाराणि । २९२ तत्थ अट्ठपदं । २९३. तं जहा । २९४. जाणि एण्हि फद्दयाणि संकामेदि अणंतरोसक्काविदे अप्पदरसंकमादो बहुगाणि त्ति एस भुजगारों । २९५. ओसक्काविदे बहुदरादो एण्हिमप्पदराणि संकामेदि त्ति एस अप्पदरो । २९६. ओसक्काविद एण्हि च तत्तियाणि संका
चूर्णिम् ०-एकेन्द्रियोमे सम्यक्त्वप्रकृतिका जघन्य अनुभागसंक्रमण सबसे कम है। सम्यक्त्वप्रकृतिसे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसंक्रमण अनन्तगुणित है। सम्यग्मिथ्यात्वसे हास्यका जघन्य अनुभागसंक्रमण अनन्तगुणित है । शेष कर्मोंके जघन्य अनुभागसंक्रमणका अल्पबहुत्व जैसा सम्यग्दृष्टि-बन्धमे अर्थात् सम्यक्त्वके अभिमुख सर्वविशुद्ध मिथ्यादृष्टिके जघन्यबन्धका कहा गया है, उस प्रकारसे निरूपण करना चाहिए ॥२८७-२९०॥
, चूर्णिसू०-भुजाकार संक्रममे तेरह अनुयोगद्वार होते है । उसमे पहले अर्थपद ज्ञातव्य है । वह इस प्रकार है-जिन अनुभागस्पर्धकोको इस समय संक्रमित करता है, वे अनन्तर-व्यतिक्रान्त अल्पतर संक्रमणसे बहुत है। यह भुजाकारसंक्रमण है। अर्थात् पहले समयमे अल्प स्पर्धकोका संक्रमण करके जब दूसरे समयमे बहुत स्पर्व कोका संक्रमण करता है, तब उसे भुजाकारसंक्रमण कहते है। अनन्तर-व्यतिक्रान्त समयमे बहुत अनुभागस्पर्धकोका संक्रमण करके इस समय अल्प स्पर्धकोका संक्रमण करता है। यह अल्पतरसंकमण
१ कुदो; सव्वघादिविट्ठाणियत्त समाणे वि सते सम्मामिच्छत्तस्स विसयीकयदारुअसमाणाण तिमभागमुल्लघिय परदो एदस्सावट्ठाणदसणादो । जयध०
२ एत्थ सम्माइबिधे त्ति णिद्देसैण सम्मत्ताहिमुहसव्वविसुद्धमिच्छाइट्ठिजहण्णवधस्स गहण कायव्व; अण्णहा अणताणुवधियादीण सम्माइट्ठिवधवहिन्भूदाणमप्पाबहुअविहाणाणुववत्तीदो। विसोहिपरिणामोवलक्षणमेत्त चेद, तेण विसुद्ध मिच्छाइट्ठिबधे जारिसमप्पाबहुअ परूविद तारिसमेवेत्थ सेसपयडीण कायच्वं, विसोहिणिबधणसुहुमेइ दियहदसमुप्पत्तियकम्मेण लद्धजहण्णभावाण तव्भावविरोहाभावादो त्ति एसो सुत्तत्थसम्भावो । जयध०
३ चउवीसमणियोगद्दारेसु परूविय समत्तेसु किमट्ठमेसो भुजगारसण्णिदो अहियारो समागदो ? वुच्चदे-जहण्णुक्कस्सभेयभिण्णाणुभागसकमस्स सगतोभाविदाजहण्णाणुक्कस्सवियप्पस्स अवत्थाभेयपदुप्पायणट्ठमागओ । तदवत्थाभूदभुजगारादिपदाणमेत्थ समुक्कित्तणादितेरसाणियोगद्दारेहि विसेसिऊण परूवणोवलभादो। जयध०
४ थोवयरफद्दयोणि सकामेमाणो जाधे तत्तो बहुवयराणि फद्दयाणि संकामेदि सो तत्स ताधे भुजगारसकमो त्ति भावत्थो । जयध०
५ एस्थ ओसक्काविदसद्दो अणतरवदिक्कतसमयवाचओ त्ति घेत्तव्यो । अथवा बहुदरादो पुविल्लसमयसकमादो एण्हिमोसक्काविदे इदानीमपकर्षिते न्यूनीकृतेऽल्पतराणि स्पर्धकानि सक्रमयतीत्यल्पतरसक्रम इति सूत्रार्थसम्बन्धः । जयध०
___ * ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'भुजगारे त्ति' इतना ही सूत्र मुद्रित है। 'तेरस अणियोगारदाणि' इतने अशको टीका में सम्मिलित कर दिया है । (देखो पृ० ११५७ पक्ति ५)