________________
गा० ५८ ]
अनुभाग संक्रम अन्तर - निरूपण
णत्थि अंतरं । २०८. एवं सेसाणं कम्माणं । २०९. णवरि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्साणुभागसं कामयं तरं केवचिरं कालादो होदि ? २१०. णत्थि अंतरं । २११. अणुक्कस्साणुभागसं कामयाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ २१२. जण्णेण एयसमओ' । २१३. उकस्सेण छम्मासा ।
२१४ एतो जहण्णयंतरं । २१५ मिच्छत्तस्स अट्ठकसायस्स जहण्णाणुभागसंकामयाणं केवचिरं अंतरं ? २१६. णत्थि अंतरं । २१७. सम्मत्त सम्मामिच्छत्तचदुसंजल-गवणोकसायाणं जहण्णाणुभागसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि १२१८. जहणेण एयसमओ । २१९. उक्कस्सेण छम्मासा । २२०. णवरि तिष्णिसंजलणपुरिसवेदाणमुकस्से वासं सादिरेयं । २२१. बुंसयवेदस्त जहष्णाणुभागसंकामयंतरशंका- मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभाग-संक्रामकोका कभी अन्तर नहीं होता है ॥२०७॥
चूर्णिसू० - इसी प्रकार मिध्यात्वके समान शेप कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभाग-संक्रामको का अन्तर जानना चाहिए । विशेषता केवल यह है कि सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभाग-संक्रमकोका अन्तरकाल कितना है ? इन दोनो कर्मों के उत्कृष्ट अनुभाग-संक्रामकोका कभी अन्तर नही होता ।। २०८-२१० ।।
शंका- इन्ही दोनो कर्मों के अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रामकोका अन्तरकाल कितना है ॥ २११ समाधान - जघन्य अन्तरकाल एकसमय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह मास है ॥२१२-२१३॥
३६७
०
चूर्णिसू ● - अब इससे आगे जघन्य अनुभाग-संक्रामकोका अन्तर कहते है || २१४ ॥ शंका- मिथ्यात्व और आठ मध्यम कपायोके जघन्य अनुभाग-संक्रामकोका अन्तर काल कितना है ? ।।२१५॥
समाधान-इन कर्मोंके जघन्य अनुभाग-संक्रामकोका कभी अन्तर नही होता ।। २१६ ॥ शंका- सम्यक्त्वप्रकृति, सम्यग्मिध्यात्व, चारो संज्वलन और नव नोकपायोके जघन्य अनुभाग-संक्रामकोका अन्तरकाल कितना है ? ॥२१७॥
समाधान-जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह मास है । विशेषता केवल यह है कि अन्तिम तीन संज्वलन और पुरुषवेदके जघन्य अनुभाग-संक्रामकोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ अधिक एक वर्ष है । नपुंसक वेदके जघन्य अनुभाग संक्रामकोका उत्कृष्ट अन्तर संख्यात वर्ष है ॥ २१८-२२१॥
१ कुदो; णाणा जीवविवक्खाए अणुक्कस्थाणुभागसकमस्स विच्छेदाणुवलद्वीदो | जयध०
२ दसणमोहक्खवयाण जहण्णतरस्त तप्पमाणत्तोवलभादो । जयघ०
३ तदुकस विरहकालस्स णाणाजीव विसयस्स तप्यमाणत्तादो । जयध०
४ कुदो, पयदजहण्णाणुभागस कामयाण सुहुमाणं णिरतरसरूवेण सव्वकालमवदित्तादो | जयध० ५ तं जहा-कोहसजलणस्स उक्कस्सतरे विवक्खिए सोदएणादिं काढूण छम्मासमतराविय पुणो मागमाया लोभोद एहिं चढाविय पच्छा सोदयपडिलभेण सादिरेयवासमेत्तमतरमुप्पाएयव्वं । एव माण माया
"