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कसाय पाटुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार अक्खवग-अणुवसामगस्स चदुसंजलण-पुरिसवेदाणमणुभागसंकमो मिच्छत्तभंगो'। ३७. खवगुवसामगाणमणुभागसंकमो सव्वघादी वा देसघादी वा, वेट्टाणिओ वा एयट्ठाणिओ वा' । ३८. सम्मत्तस्स अणुभागसंक्मो णियमा देसघादी । ३९. एयट्ठाणिओ वेढाणिओ वा। है । जघन्य अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय ही होता है। अजघन्य अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय भी होता है, त्रिस्थानीय भी होता हैं और चतुःस्थानीय भी होता है। किन्तु सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य चारो ही प्रकारका अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय ही होता है।
चूर्णिसू०-अक्षपक और अनुपशामक जीवके चारों संज्वलन और पुरुपवेदका अनुभागसंक्रमण मिथ्यात्वके समान जानना चाहिए। क्षपक और उपशामक जीवोके कर्मोंका अनुभागसंक्रमण सर्वघाती भी होता है और देशघाती भी होता है । तथा वह द्विस्थानीय भी होता है और एकस्थानीय भी होता है ॥३६-३७॥
विशेषार्थ-उपशम या क्षपक श्रेणी चढ़नेके पूर्ववर्ती सातवें गुणस्थान तकके जीवोके चारो संज्वलन और पुरुपवेदका अनुभागसंक्रमण सर्वघाती तथा द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय और चतुःस्थानीय होता है। क्षपक और उपशमश्रेणीपर चढ़नेवाले जीवोके उक्त पाँची कोंका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय और सर्वघाती ही होता है। अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय भी होता है और एकस्थानीय भी होता है, तथा सर्वघाती भी होता है और देशघाती भी होता है। इनका जघन्यानुभागसंक्रमण देशघाती और एकस्थानीय होता है। अजधन्यानुभागसंक्रमण एकस्थानीय भी होता है और द्विस्थानीय भी होता है। तथा देशघाती भी होता है और सर्वघाती भी होता है।
चूर्णिसू०-सम्यक्त्वप्रकृतिका अनुभागसंक्रमण नियमसे देशघाती होता है। तथा वह एकस्थानीय भी होता है और द्विस्थानीय भी होता है ॥३८-३९॥
१ कुदो ? सव्वघादित्तणेण वि-ति चदुहाणियत्तणेण च भेदाभावादो | जयघ०
२ त जहा-खवगोवसामगेसु एदेसिमुक्कस्साणुभागस कमो वेछाणिओ सव्वधादी चेय; अपुवकरणपवेसपढमसमए तदुवलभादो । अणुक्कस्साणुभागसंकमो वेवाणिओ एगट्ठाणिओ वा, सव्वघादी वा देसघादी वा । एगट्ठाणिओ कत्थोवलन्भदे ? खवगोवसमसेढीसु अतरकरण कादणेगाणियमणुभाग बंधमाणस्स सुद्धणवकबधसकमणावत्थाए किट्टीवेदगकालव्भतरे च । देसघादित्त च तत्थेव लव्भदे । जहण्णाणुभागस कमो एदेसिं देसघादी एयट्ठाणिओ च, जहासभवणवकबंधस्स किट्टीण चरिमसमयसकामणाए तदुवलभादो) अजहण्णाणुभागसकमो एयट्ठाणिओ वेठाणिओ वा देसघादी वा सव्वधादी वा, अणुकस्सस्सेव तदुवलभादो । जयध०
३ कुदो ? उक्कस्साणुकस्स जहण्णाजहण्णभेदाण सम्वेसिमेव देसघादित्तदसणादो | जयध०
४ तदुक्कस्साणुभागसंकम वेवाणिओ चेव तत्थ लदा-दारुअसमाणाणुभागाणं दोण्ह पिणियमेणीवलभादो । अणुक्कसो वेठ्ठाणिओ एयछाणिओ वा; दंसणमोहक्खवणाए अवस्सट्ठिदिसतकम्मप्पहुडि एयट्ठाणाणुभागदसणादो । हेटछा विठ्ठाणियणियमादो जहण्णाणुभागसंकमो णियमेणेयट्टाणिओ, समया
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