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कसाय पाहुड सुत्त
[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार
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४८. सुहुमस' हदसमुप्पत्तिकम्मेण अण्णदरो। ४९. एइ दिओ वा वेई दिओ वा ते दिओ वा चउरिंदिओ वा पंचिदिओ वा । ५० एवमट्टणं कसायाणं । ५१. सम्मत्तस्स जहण्णाणुभागसं कामओ को होइ ? ५२. समयाहियावलिय- अक्खीणदंसणमोहणीओ । ५३. सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागसंकामओ को होड़ १ ५४. चरिमाणुभागखंडय
शंका- मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसंक्रमण किसके होता है ? ॥ ४७ ॥ समाधान- सूक्ष्मनिगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीवके होता है । अथवा हतसमुत्पत्तिक कर्मसे उपलक्षित जो कोई एक एकेन्द्रिय, अथवा द्वीन्द्रिय अथवा त्रीन्द्रिय अथवा चतुरिन्द्रिय, अथवा पंचेन्द्रिय जीव है, वह मिध्यात्व के जघन्य अनुभागसंक्रमणका स्वामी है ॥४८-४९॥
विशेषार्थ - सूक्ष्मनिगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीवके मिथ्यात्व के अनुभागसत्त्वका जितना घात शक्य है, उतना घात करके अवस्थित जीवको हतसमुत्पत्तिक कर्मसे उपलक्षित ह है । मिथ्यात्वके इस प्रकार जघन्य अनुभागसत्त्वसे युक्त उक्त प्रकारका एकेन्द्रिय जीव भी जघन्य अनुभागसंक्रमण करता है, अथवा उतने ही अनुभागसत्त्ववाला द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तकका कोई भी जीव मिथ्यात्वका जवन्य अनुभागसंक्रमण कर सकता है ।
चूर्णिसू० - इसी प्रकार आठो मध्यम कपायोके जघन्य अनुभागसंक्रमणके स्वामित्वको जानना चाहिए ॥ ५० ॥
शंका-सम्यक्त्वप्रकृतिका जघन्य अनुभागसंक्रमण कौन करता है ? ॥ ५१ ॥ समाधान - जिसके दर्शनमोहनीयकर्मके क्षय करनेमे एक समय अधिक आवलीकाल अवशिष्ट है, ऐसा जीव सम्यक्त्वप्रकृतिके जघन्य अनुभागका संक्रमण करता है ॥५२॥ शंका-सम्यग्मिथ्यात्व के जघन्य अनुभागका संक्रामक कौन है ? ॥ ५३ ॥
समाधान - सम्यग्मिथ्यात्व के अन्तिम अनुभाग कांडकका संक्रमण करनेवाला जीव सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागका संक्रामक होता है ॥ ५४ ॥
१ एत्थ सुमग्गहणेण सुहुमणिगोद - अपज्जत्तयस्स गहणं कायव्य, अण्णत्थ जहण्णाणुभागसकमुप्पत्तीए अदसणादो | XXX किं हदसमुप्पत्तिय णाम ? हते समुत्पत्तिर्यस्य तद्वतसमुत्पत्तिक कर्म, यावच्छक्य तावत्प्राप्तघातमित्यर्थः । त पुण सुहुमणिगोदापजत्तयस्स सव्युकस्स विसोहीए पत्तवाद जहण्णाणुभागसतक्म्म तदुकाणुभागवधादो अणतगुणहीण, तस्सेव जहण्णाणु भागवधादो अणतगुणभहिय तप्पा ओग्गजहण्णाणुक्कस्तवधट्ठाणेण समाणमिदि घेत्तव्त्र । जयध०
२ सेसाण सुमहयसंतकम्मिगो तस्स हेटुओ जाब |
वंधइ तावं एर्गिदिओ व गिंदिओ वा चि ॥५९॥ कम्म० अनुभागस० |
३ कुदो एस्स जहण्णभावो ! पत्तसव्युकस्सघादत्तादो अणुसमयोवट्टमाणाए अइजहण्णीकयत्तादो च । जयध०
४ दसणमोहक्खवणाए दुरिमा दिहे
माणुमा गखडयाणि संकामिय पुणो सम्मामिच्छत्तचरिमाणुभागखइए वायदो जो सो पयद नहण्णसामिओ होइ; तत्तो हेट्ठा सम्मामिच्छत्तसब विनण्णाणुभाग संकमा वलभादो | जयध०
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