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गा० ५८ ]
अनुभाग संक्रम- स्वामित्व-निरूपण
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४०. सामित्तं । ४१. मिच्छत्तस्स उक्कस्साणुभागसंकमो कस्स १ ४२. 'उकस्साणुभागं वंधिदूणावलियपडिभग्गस्स अण्णदरस्स । ४३. एवं सव्वकम्माणं । ४४. णवरि सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणमुकस्साणुभागसंकमो कस्स १४५. दंसणमोहणीयक्खवयं मोत्तृण जस्त संतकम्ममत्थि ति तस्स उकस्साणुभागसं कमी |
४६. तो जहण्णयं । ४७. मिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागसंकामओ को होइ ? चूर्णि सू ० - अब उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण के स्वामित्वको कहते है ॥ ४० ॥ शंका- मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण किसके होता है ? ॥ ४१ ॥
समाधान - उत्कृष्ट अनुभागको बॉध करके आवलिप्रतिभग्न अर्थात् वन्धावली के परे अवस्थित किसी भी एक जीवके मिध्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण होता है ॥ ४२ ॥
विशेषार्थ - जिस जीवने तीव्र संक्लेश से मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागको बॉधा, बन्धावीके पश्चात् उसके मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण पाया जाता है। ऐसा जीव कोई भी संज्ञी पंचेन्द्रिय उत्कृष्ट संक्लेश-युक्त मिथ्यादृष्टि होता है । यहाँ इतना विशेष ज्ञातव्य है कि असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यंच और मनुष्यो में तथा देवोमे यह उत्कृष्ट अनुभाग संक्रमण नहीं पाया जाता ।
चूर्णिसू० - इसी प्रकार मिध्यात्वकर्म के समान सर्वक्रमका स्वामित्व जानना चाहिए | विशेषता केवल यह है कि सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण किसके होता है ? दर्शनमोहनीयके क्षपण करनेवाले जीवको छोड़कर जिसके संक्रमण के योग्य सत्कर्म पाया जाता है, उसके उक्त दोनों कर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण होता है ॥४३-४५॥ चूर्णिसू० 10- अब इससे आगे जघन्य अनुभागसंक्रमणके स्वामित्वको कहते हैं ॥ ४६ ॥ हियावलियदंसणमोहक्खवयम्मि तदुवलभादो | अजहण्णाणुभागस्कमो एयट्ठाणिओ वेट्ठाणिओ वा; दुसमयाहियाव लियद सणमोहक्खवयप्प हुडि जावुक्कस्साणुभागोत्ति ताव अजहण्गवियप्पावठाणादो । जयध० १ उक्कोसगं पबंधिय आवलियमइच्छिऊण उक्कस्सं ।
जाव ण घारइ तयं संकमइ आमुहुत्तंता ॥५२॥ कम्म० अनु० स०
२ आवलियपडिभग्ग मोत्तूण बघपढमसमए चेव सामित्त किण्ण दिज्जदे ? ण, अणइच्छाविय बधावलियम्स कम्मस्स ओकड्डुणादिसकमणाण पाओग्गत्ताभावादो । सो बुण मिच्छत्तुकस्साणुभागवधगो सण्णिप चिंदियपज्जत्तमिच्छाइट्ठि सव्वस किलिट्ठो । जइ एव; अण्णत्थुकस्साणुभागसकमो ण कयाइ लम्भदि त्ति आसकाए णिरायरणट्ठमण्णदर विसेसण कद, तदुक्कस्सब घेणाघादिदेण सह एइ दियादिसुप्पण्णस्स तदुवलभे विरोहाभावादो । णवरि असखेज्जवस्ताउअतिरिक्ख माणुसोववादियदेवेषु च ओधुक्कस्साणुभागस कमो ण भदे, तमघादेदूण तत्थुप्पत्तीए असभवादो । एदेण सम्माइट्ठीसु वि मिच्छत्तु कस्साणुभागसकमो पडिसिद्धो दव्वो । उकसाणुभाग बधिय आवलियपडिभग्गस्स कडयघादेण विणा सम्मत्त गुणग्गहणाणुववतदो । कथमेसो विसेसो सुत्तेणानुवइट्ठो णज्जदे १ ण, वक्खाणादो सुत्ततरादो ततजुत्तीए च तदुवलद्धीदो ।
जयध०
३ कुदो दसणमोहक्खवयादो अण्णत्थ तेसिमणुभागख इयघादाभावादो । जइ वि एत्थ सामण्णेण जस्स सतकम्ममत्थि त्ति वृत्त, तो वि पयरणवसेण सकमपाओग्गं जस्स संतकम्ममत्थि त्ति घेत्तव्व, अण्णहा उव्वेल्लणाए आवलियपविट्ठसतकम्मियस्स वि गइणप्पसगादो । जयध