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गा० ५८] अनुभागसंक्रम-घातिसंज्ञा-स्थानसंज्ञा-निरूपण
३४९ ३३. तत्थ पुव्वं गमणिज्जा धादिसण्णा च हाणसण्णा च । ३४. सम्मत्त-चदुसंजलणपुरिसवेदाणं मोत्तूण सेसाणं कम्माणमणुभागसंकमो णियमा सव्वघादी', वेट्टाणिओ वा तिहाणिओ वा चउहाणिओ वा । ३५. णवरि सम्मामिच्छत्तस्स वेढाणिओ चेव । ३६.
विशेषार्थ-वे चौबीस अनुयोगद्वार इस प्रकार है-१ संज्ञा, २ सर्वसंक्रम, ३ नोसर्वसंक्रम, ४ उत्कृष्टसंक्रम, ५ अनुत्कृष्टसंक्रम, ६ जघन्यसंक्रम, ७ अजघन्यसंक्रम, ८ सादिसंक्रम, ९ अनादिसंक्रम, १० ध्रुवसंक्रम, ११ अध्रु वसंक्रम, १२ एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, १३ काल, १४ अन्तर, १५ सन्निकर्ष, १६ नाना जीवोको अपेक्षा भंगविचय, १७ भागाभाग, १८, परिमाण, १९ क्षेत्र, २० स्पर्शन, २१ काल, २२ अन्तर, २३ भाव और २४ अल्पबहुत्व । इनका अर्थ अनुभागविभक्तिके अनुसार जानना चाहिए ।
चूर्णिसू०-इनमेसे पहले संज्ञा गवेषणीय है। संज्ञा दो प्रकारकी है घातिसंज्ञा और स्थानसंज्ञा ॥३३॥
विशेषार्थ-मिथ्यात्वादि कर्मोंके उत्कृष्ट-अनुत्कृष्टादि अनुभागसंक्रमण-सम्बन्धी स्पर्धकोमे देशघाती और सर्वघातीकी परीक्षा करनेको धातिसंज्ञा कहते है। तथा उन्हीं स्पर्धकोमे यथासंभव एकस्थानीय, द्विस्थानीय आदि भावोकी गवेषणा करनेको स्थानसंज्ञा कहते है।
अब चूर्णिकार इन दोनों संज्ञाओका एक साथ निर्देश करते है
चूर्णिसू०-सम्यक्त्वप्रकृति, चारो संज्वलनकषाय और पुरुषवेद, इन छह कर्मोंको छोड़कर शेष बाईस कर्मोंका अनुभागसंक्रमण नियमसे सर्वघाती, तथा द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय और चतुःस्थानीय होता है । केवल सम्यग्मिथ्यात्वका अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय ही होता है ॥३४-३५॥
विशेपार्थ-मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषाय और पुरुषवेदको छोड़कर शेष आठ नोकषायोका उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य अनुभागसंक्रमण नियमसे सर्वघाती ही होता है। इनमे उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण चतुःस्थानीय ही होता है । अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण चतुःस्थानीय भी होता है, त्रिस्थानीय भी होता है और द्विस्थानीय भी होता
१ सेसकम्माण मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्त-वारसकसाय अठ्ठणोकसायाणमणुभागसकमो उक्स्सो अणु किस्सो जहण्णो अजहण्णो च सम्बघादी चेव, देसघादिसरूवेण सव्वकालमेदेसिमणुभागसकमपवुत्तीए असभवादो। जयध०
२ एयट्ठाणिओणस्थि, सव्वधादित्तणेण तस्स पडिसिद्धत्तादो। तत्थुक्कस्साणुभागसकमो चउठाणिओ चेव, तत्थ पयारतराणुवलभादो । अणुक्कस्साणुभागसकमो पुण च उट्ठाणिओ तिहाणिओ विठ्ठाणिओ वा, तिण्मेदेसिं भावाण तत्थ सभवादो। जहष्णाणुभागसकमो विट्ठाणिओ चेव, तत्थ पयार तरासंभवादो। अजहण्णाणुभागस कमो विट्ठाणिओ, तिट्ठाणिओ चउट्ठाणिओ वा, तिविहस्स वि मावस्स तत्थ सभवादो। जयध०
३ कुदो १ दारुअसमाणाण तिमभागे चेव सव्वघादित्तणेण तदणुभागस्स पजवसिदत्तादो। जयध०