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अणुभाग-संकमाहियारो १. अणुभागसंकमो दुविहो मूलपयडि-अणुभागसंकमो च उत्तरपयडि-अणुभागसंकमो च' । २. तत्थ अट्ठपदं । ३. अणुभागो ओकड्डिदो वि संकमो, उक्कडिदो वि संकमो, अण्णपयडिं णीदो वि संकमो ।
अनुभाग-संक्रमाधिकार अब गुणधराचार्यके मुख-कमलसे विनिर्गत 'संकामेदि कदि वा' गाथासूत्रके इस तृतीय चरणमें निबद्ध अनुभागसंक्रमणका विवरण किया जाता है।
चूर्णिसू०-अनुभागसंक्रमण दो प्रकारका है-मूलप्रकृति-अनुभागसंक्रमण और उत्तरप्रकृति-अनुभागसंक्रमण । उनके विषयमे यह अर्थपद हैं-अपकर्षित भी अनुभागसंक्रमण होता है, उत्कर्षित भी अनुभागसंक्रमण होता है और अन्य प्रकृतिरूपसे परिणत भी अनुभागसंक्रमण होता है ॥१-३॥
विशेषार्थ-अनुभाग नाम कर्मों के स्वकार्योत्पादन या फल-प्रदान करनेकी शक्तिका है । उसके संक्रमण अर्थात् स्वभावान्तर करनेको अनुभागसंक्रमण कहते है। यह स्वभावान्तरावाप्ति तीन प्रकारसे की जा सकती है-फल देनेकी शक्तिको घटाकर, बढ़ाकर या पर प्रकृतिरूपसे परिवर्तित कर । इनमेंसे कर्मोकी आठो मूलप्रकृतियोके अनुभागमे पर प्रकृतिरूपसंक्रमण नहीं होता, केवल अनुभागशक्तिके घटानेरूप अपकर्षणसंक्रमण और बढ़ानेरूप उत्कपणसंक्रमण होता है। परन्तु उत्तरप्रकृतियोमे अपकर्षणसंक्रमण, उत्कर्पणसंक्रमण और परप्रकृतिसंक्रमण ये तीनो ही होते है ।
१ अणुभागो णाम कम्माण सगकज्जुप्पायणसत्ती। तस्स सकमो सहावतरसकती । सो अणुभागसकमा त्ति वुच्चइ Ixxx तत्थ मूलपयडिमोहणीयसणिदाए जो अणुभागो जीवम्मि मोहुप्पायणसत्तिलक्षणो तस्स ओकडडुक्कड्डणावसेण भावतरावत्ती मूलपयडिअणुभागसकमो णाम । उत्तरपयडीण च मिच्छत्तादीणमणुभागस्स ओकड्डुक्कड्डणपरपयडिसकमेहि जो सत्तिविपरिणामो सो उत्तरपयडिअणुभागसकमो त्ति भण्णदे ।
जयध० २ तत्थट्ठपयं उम्वट्टिया व ओवट्टिया व अविभागा।
__ अणुभागसंकमो एस अन्नपगई णिया वावि ॥४६॥ कम्मप० अनु० सकम० ३ ओकडिदो ताव अणुभागो सकमववएस लहदे, अहियरसस्स कम्मक्खधस्स तस्स हीणरसत्तेण विपरिणामदसणादो; अवस्थादो अवस्थतरसकती सकमो त्ति । एवमुक्कडिदो अण्णपयडि णीदो वि सकमो, तत्थ वि पुत्वावत्यापरिच्चाएणुत्तरावत्थावत्तिदसणादो। xxx अण्णपयडिं णीदो वि अणुभागो सकमो त्ति एद तइज्जमठपदमुत्तरपयडिविसय चेव, मूलपयडीए तदसभवादो। जयध०