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गा० ५८ ]
स्थितिसंक्रम-वृद्धि-अल्पबहुत्व-निरूपण
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२९६. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा असंखेज्जगुणहाणिसंकामया' । २९७. अवट्ठिदसंकामया असंखेज्जगुणा । २९८. असं खेज्जभागवड्डिसं कामया असंखेज्जगुण । २९९. असंखेज्जगुणवसिंकामया असंखेज्जगुणों । ३०० संखेज्जभागवड्डिसं कामया असंखेज्जगुणा' । ३०१. संखेज्जगुणवद्धिसंकामया संखेज्जगुण । ३०२ संखेज्जगुणहाणिसं कामया संखेज्जगुणा । ३०३ . संखेज्जभागहाणिसंकामया संखेज्जगुण । ३०४. अवत्तव्वसंकामया असंखेज्जगुणा' । ३०५. असंखेज्जभागहाणिसंकामया असंखेज्जगुणा " ।
चूर्णिसू० - सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्व के असंख्यातगुणहानिसंक्रामक सबसे कम है । इनसे अवस्थित संक्रामक असंख्यातगुणित है । इनसे असंख्यात भागवृद्धिसंक्रामक असंख्यातगुणित है । इनसे असंख्यातगुणवृद्धिसंक्रामक असंख्यातगुणित है । इनसे संख्यातभागवृद्धि-संक्रामक असंख्यातगुणित हैं । इनसे संख्यातगुणवृद्धि संक्रामक संख्यातगुणित हैं । इनसे संख्यातगुणहानि - संक्रामक संख्यातगुणित हैं । इनसे संख्यातभागहानि-संक्रामक संख्यातगुणित हैं । इनसे अवक्तव्य-संक्रामक असंख्यातगुणित हैं । इनसे असंख्यात भागहानि-संक्रामक असंख्यातगुणित है ॥२९६- ३०५ ॥
विशेषार्थ - सूत्र नं० ३०३ की टीका करते हुए आ० वीरसेनने 'असंखेज्जगुणा' कहकर एक पाठान्तरका उल्लेख किया है, और उसका समाधान इस प्रकार किया है कि स्वस्थानकी अपेक्षा तो संख्यातगुणहानि - संक्रामको से संख्यात भागहानि - संक्रामक संख्यातगुणित ही हैं, किन्तु अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेवाले सम्यग्दृष्टियोकी अपेक्षा वे असंख्यातगुणित भी है । ऐसा कहकर उन्होने अपना यह अभिप्राय प्रगट किया है कि यह पाठान्तर ही यहाॅ प्रधानरूपसे स्वीकार करना चाहिए ।
१ कुदो; दसणमोहक्खवयस खेजजीवे मोत्तणण्णत्थ तदसभवादो । जयध०
२ कुदो, पलिदोवमासंखेज्जभागपमाणत्तादो । ण चेदमसिद्ध; अवदिपाओग्गसमयुत्तरमिच्छत्तदिट्ठदिवियपेसु तेत्तियमेत्तजीवाण सभवदसणादो | जयघ०
३ त जहा - अवदसकमपाओग्गविसयादो असखेज्जभागवड्ढिपाओग्गविसओ असखेज्जगुणो; अवट्ठिदपाओग्गटिट्ठदिविसेसेसु पादेक्क पलिदोवमस्स सखेज्जदिभागमेत्ताण मस खेज्जभागवड्ढि वियप्पाणमुप्पत्तिदसणादो । तदो विसयबहुत्तादो सिद्धमेदेसिमस खेज्जगुणत्त । जयध०
४ सचयकालमाहप्पेणेदेसिमसखेज्जगुणत्त । जयघ०
५ किं कारण, पुव्विल्लविसयादो एदेसिं विसयस्स असखेज्जगुणत्तोवलभादो । जयध०
६ कारण - दोहमेदेसिं वेदगसम्मत्त पडिवज्जमाणरासीपहाणो । किंतु सखेज्जभागवड्ढिविसयादो वेदगसम्मत्त पडिवज्जमाणजीवेहिंतो सखेज्जगुणवड्ढि विसयादो वेदगसम्मत्त पडिवज्ज माणजीवा सचयकालमाहप्पेण सखेज्जगुणा जादा | जयघ
७ कुदो; तिष्णिवड्ढि अवट्ठाणेहिं गहियसम्मत्ताणमतोमुहुत्तसचिदाणं संखेज्जगुणहाणीए पाओग्गत्तदसणादो | जयघ
८ कारणमेत्थ सुगमं, मिच्छत्तप्पात्रहुअसुत्ते परुविदत्तादो | जयध०
९ कुदो; अद्धपोग्गलपरियडसचयादो पडिणियत्तिय णिस्संतकम्मियभावेण सम्मत्तं पडिवज्जमाणाणमिहग्गहणादो । जयघ०
१० पुविल्लासेससं कामया सम्मत्त सम्माच्छित्त- सतक म्मियाणमसंखेज्जदिभागो चेवः सव्वेसिमेय