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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार उगुवीसहारसयं चोइस एक्कारसादिया सेसा । एदे मुण्णदाणा णसए चोदसा होति ॥५०॥ अवारस चोहसयं ट्राणा सेसा य दसगमादीया। एदे सुण्णटाणा बारस इत्थीसु बोद्धव्वा ॥५१॥ चोदसग णवगमादी हवंति उवसामगे च खवगे च । एदे सुण्णद्वाणा दस वि य पुरिसेसु बोद्धव्या ॥५२॥ णव अट्ट सत्त छकं पणग दुगं एक्कयं च बोद्धव्वा । एदे सुण्णटाणा पढमकसायोवजुत्तेसु ॥५३॥ सत्त य छकं पणगं च एक्कयं चेव आणुपुबीए । एदे सुण्णटाणा विदियकसाओवजुत्तेसु ॥ ५४॥
नपुंसकवेदी जीवों में उन्नीस, अट्ठारह, चौदह और ग्यारहको आदि लेकर शेप स्थान, अर्थात् ग्यारह, दश, नौ, आठ, सात, छह, पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक चौदह स्थान शून्य हैं ॥५०॥
अव स्त्रीवेदी जीवोमे नही पाये जानेवाले संक्रमस्थानोका प्ररूपण करते है
स्त्रीवेदी जीवोंमें अट्ठारह और चौदह-प्रकृतिक ये दो स्थान, तथा दशको आदि लेकर एक तकके दश स्थान, इस प्रकार ये बारह स्थान शून्य जानना चाहिए ॥५१॥
अब पुरुपवेदी जीवोमे नहीं पाये जानेवाले संक्रमस्थानोको वतलाते हैं
पुरुपवेदी जीवोंमें, उपशामकमें और क्षपकमें चौदह-प्रकृतिक संक्रमस्थान तथा नौको आदि लेकर एक तकके नौ स्थान इस प्रकार दश स्थान शून्य हैं ॥५२॥
अब क्रोधकपायी जीवोमे नहीं पाये जानेवाले संक्रमस्यानोको कहते हैं
प्रथम-क्रोधकपायसे उपयुक्त जीवोंमें नौ, आठ, सात, छह, पाँच, दो और एक-प्रकृतिक सात स्थान शून्य हैं ॥५३॥
अव मानकपायी जीवोमे नही पाये जानेवाले संक्रमस्थानोको कहते हैं
द्वितीय मानकपायसे उपयुक्त जीवोंमें सात, छह, पाँच और एक प्रकृतिक चार स्थान शून्य हैं । इस प्रकार आनुपूर्वीसे शून्यस्थानोंका कथन किया ॥५४॥
विशेपार्थ-शेप दो माया और लोभकपायमे शून्यस्थानका विचार नहीं है, क्योंकि उनमे सभी संक्रमस्थान पाये जाते हैं।
अब ग्रन्थकार इसी उपर्युक्त दिशासे शेप मार्गणास्थानोमें सम्भव और असम्भव संक्रमस्थानोके भी जान लेनेकी सूचना करते हैं