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गा० ५८]
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संक्रमस्थान-अन्तर-निरूपण
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प्राप्त कर छब्बीसका संक्रामक हुआ । इस प्रकार छब्बीस-प्रकृतिक संक्रमस्थानका उपार्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल सिद्ध हो जाता है । तेईस-प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य
और उत्कृष्ट अन्तरकालका विवरण इस प्रकार है-चौबीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई उपशमसम्यग्दृष्टि तेईस प्रकृतियोके संक्रमणकालमें एक समय रह जाने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुआ और एक समयमात्र इक्कीसका संक्रामक बन अन्तरको प्राप्त होकर दूसरे ही समयमे मिथ्यात्वमे जाकर तेईसका संक्रामक हो गया। इस प्रकार प्रकृत संक्रमस्थानका एक समयमात्र जघन्य अन्तरकाल प्राप्त हो जाता है। अथवा तेईसका संक्रामक कोई जीव उपशमश्रेणी पर चढ़ करके अन्तरकरणकी समाप्ति के अनन्तर ही आनुपूर्वी-संक्रमणका प्रारम्भ करके एक समय बाईसके संक्रामक रूपसे अन्तरको प्राप्त होकर और दूसरे समयमे देवोमै उत्पन्न होकर तेईसका संक्रामक हो गया । इस प्रकारसे भी एक समयमात्र जघन्य अन्तरकाल सिद्ध हो जाता है। इसी संक्रमस्थानके उत्कृष्ट अन्तरकालका विवरण इस प्रकार हैकोई अनादिमिथ्यादृष्टि जीव अर्धपुद्गलपरिवर्तनके आदि समयमे सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ
और उपशमसम्यक्त्वके कालके भीतर ही अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके तेईस-प्रकृतिक संक्रमस्थानका प्रारम्भ कर उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवली काल शेप रह जानेपर सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुआ और इक्कीसका संक्रमणकर अन्तरको प्राप्त हो पुनः मिथ्यात्वमे जाकर देशोन अर्धपुद्गलपरिवर्तन तक संसारमे परिभ्रमण कर संसारके सर्व जघन्य अन्तमुहूर्तमात्र शेष रह जानेपर उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण करके पुनः वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होकर क्षपकश्रेणीपर चढ़नेके लिए अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन 'करके तेईसका संक्रामक हुआ। इस प्रकार प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त हो जाता है। इक्कीस-प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य अन्तर कालका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई जीव उपशमश्रेणीपर चढ़ करके अन्तरकरणकी समाप्ति होनेपर लोभसंज्वलनके असंक्रमके वशसे एक समय वीसका संक्रामक बनकर अन्तरको प्राप्त होकर मरा और देव होकर पुनः इक्कीसका संक्रामक हो गया। इस प्रकार एक समयमात्र जघन्य अन्तरकाल सिद्ध हो गया। इसी संक्रमस्थानके उत्कृष्ट अन्तर कालका विवरण इस प्रकार है-कोई एक अनादिमिथ्यादृष्टि जीव अर्धपुद्गलपरिवर्तनके आदि समयमे प्रथमसम्यक्त्वको प्राप्त होकर और उपशमसम्यक्त्वके कालके भीतर ही अनन्तानुवन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करके उपशमसम्यक्त्वके कालमे छह आवली काल शेष रह जानेपर सासादनगुणस्थानको प्राप्त होकर इक्कीस प्रकृतियोका एक आवली तक संक्रमण करके तदनन्तर समयमे पञ्चीसका संक्रामक बनकर और अन्तरको प्राप्त होकर तदनन्तर मिथ्यात्वमे जाकर और अर्धपुद्गलपरिवर्तन तक परिभ्रमण करके संसारके सर्व-जघन्य अन्तर्मुहूर्तमात्र शेष रह जानेपर दर्शनमोहका क्षय करके इक्कीस प्रकृतियोका संक्रामक हुआ। इस प्रकार देशोन अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण इक्कीसप्रकृतिक संक्रमस्थानका उत्कृष्ट अन्तरकाल जानना चाहिए ।