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गा० ५८] उत्कर्षणापकर्षण अर्थपद-निरूपण
३१७ ३२. जदि जत्तिया जहणिया अइच्छावणा तत्तिएण अब्भहिओ संतकम्मादो बंधो तिस्से वि संतकम्म अग्गद्विदीए णत्थि उक्कड्डणा' । ३३. अण्णो आवलियाए असंखेज्जदिभागो जहण्णओ णिक्खेवो । ३४. जइ जहणियाए अइच्छावणाए जहण्णएण च णिक्खेवेण एत्तियमेत्तेण संतकम्मादो अदिरत्तो बंधो सा संतकम्मअग्गहिदी उक्कड्डिज्जदि । ३५. तदो समयुत्तरे बंधे णिक्खेवो तत्तिओ चेव, अइच्छावणा वड्ढदि । ३६. एवं ताव अइच्छावणा वड्डइ जाव अइच्छावणा आवलिया जादा ति । ३७. तेण परं णिक्खेवो वड्डइ जाव उक्कस्सओ णिक्खेवो त्ति ।
३८. उक्कस्सओ णिक्खेवो को होइ ? ३९. जो उक्कस्सियं ठिदि वंधियूणाजघन्य अतिस्थापना है, उससे भी अधिक यदि सत्कर्मसे वन्ध हो, तो उसके ऊपर भी सत्कर्मकी अग्रस्थितिकी उद्वर्तना नही होगी । जघन्य अतिस्थापनाके ऊपर आवलीके असंख्यातवे भागसे अधिक और भी बन्ध होनेपर जघन्य निक्षेप होता है। यदि जघन्य अतिस्थापना और जघन्य निक्षेप, इन दोनोके प्रमाणसे अधिक सत्कर्मकी अपेक्षा नवीन वन्ध हो, तो वह सत्कर्मस्थिति उद्वर्तित की जाती है, अर्थात् सत्कर्मसे नवीन वन्धके उक्त प्रमाणसे अधिक होनेपर उद्वर्तना होगी । जघन्य स्थापना और जघन्य निक्षेपसे एक समय अधिक बन्ध होनेपर निक्षेपका प्रमाण तो उतना ही रहेगा। किन्तु अतिस्थापनाका प्रमाण बढ़ता है। इस प्रकार एक-एक समयकी वृद्धिसे अतिस्थापन तब तक बढ़ती है, जब तक कि अतिस्थापना पूरी एक आवली प्रमाण न हो जाय । अतिस्थापनाके एक आवली प्रमाण हो जाने पर उससे आगे निक्षेप ही बढ़ता है । यह समयोत्तर-वृद्धि उत्कृष्ट निक्षेप तक बरावर चालू रहती है ॥२९-३७॥
शंका-उत्कृष्ट निक्षेपका प्रमाण कितना है ? ॥३८॥
समाधान-जो संज्ञी, पंचेन्द्रिय, पर्याप्तक जीव सर्वोत्कृष्ट संक्लेशके द्वारा सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर-प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिको वॉधकर और बन्धावलीको अतिक्रान्त कर उस
१ कुदो, एत्थ जहण्णाइच्छावणाए सतीए वितप्पडिबद्धजहण्णणिक्खेवस्स अज्जवि सभवाणुवलभादो। ण च णिक्खेवविसएण विणा उक्कड्डणासभवो अस्थि, विप्पडिसेहादो । जयध० ।
२ जहष्णाइच्छावणाए उवरि पुणो वि आवलियाए असखेज्जदिभागमेत्तवधवुड्ढीए जहण्णणिक्खेवसभवो होइ त्ति भणिद होइ । जयध०
३ कुदो, एत्थ जहण्णाइच्छावणाणिक्खेवाणमविकलसरूवेणोवलभादो । जयध० ४ कुदो एव, सव्वत्थ णिक्खेववुड्ढोए अइच्छावणावड्ढीपुरस्सरत्तदसणादो | जयध०
५ सा जहण्णाइच्छावणा समयुत्तरकमेण बधवुड्ढीए वड्ढमाणिया ताव वड्ढइ जाव उक्कस्सियाइच्छावणा आवलिया सपुण्णा जादा त्ति सुत्तत्थसबधो । एत्तो उवरि वि अइच्छावणा किण्ण वड्हाविज्जदे ? ण, पत्तपयरिसपज्जताए पुण वड्डिविरोहादो । जयध०
६ एत्थ ताव पुवणिरुद्धसतकम्मअग्गठ्ठिदीए उक्कस्सणिखेवबुड्ढी समयुत्तरकमेण अइच्छा वणावलियासियहेट्टिमअतोकोडाकोडीपरिहीणकग्मठिदिमेत्ता होइ । णवरि बधावलियाए सह अतोकोडाकोडी ऊणिया । एसाच आदेसुक्कस्सिया । एत्तो हेट्ठिमाण सतकम्मदुचरिमादिट्ठिदीण समयाहियकमेण पच्छाणुपुवीए णिक्खेववुड्ढी वत्तव्या जाव ओघुक्कस्सणिक्खेव पत्ता त्ति । जयध०