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कसाय पाहुड सुन्त
[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार अपच्छिमडिदिखंडयं संछुहमाणयस्स तस्स जहण्णयं । ७३. छष्णोकसायाणं जहणहिदिसंकमो कस्स १ ७४. खवयस्स तेसिमपच्छिमडिदिखंडयं संछुहमाणयस्स तस्स जहण्णयं । ७५. एयजीवेण कालो । ७६. जहा उकस्सिया हिदि-उदीरणा, तहा उक्कस्सओ द्विदिकमो । ७७ एतो जहण्णडिदिसंकमकालो । ७८ अट्ठावीसाए पयडीणं जहण्णडिदिसंकमकालो केवचिरं कालादो होदि १ ७९ जहण्णुक्कस्सेण एयसमओ । ८०. वरि इत्थवंसयवेद छण्णोकसायाणं जहण्णडिदिसंकमकालो केवचिरं कालादो होदि ? ८१. जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
८२. एत्तो अंतरं । ८३. उक्कस्यट्ठि दिसंकामयंतरं जहा उकस्सट्ठिदिउदीरणाए अंतरं तहा कायव्वं । ८४. एत्तो जहण्णयमंतरं । ८५. सव्वासि पयडीणं णत्थि अंतरं । ८६. णवर अणताणुबंधीणं जहण्णट्ठिदिसं कामयंतरं जहणेण अंतोमुहुतं । ८७. उक्कस्सेण उबड्डूपोग्गल परियङ्कं ।
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शंका- हास्यादि छह नोकपायोका जघन्य स्थितिसंक्रमण किसके होता है ? ॥ ७३ ॥ समाधान - हास्यादि छह नोकपायोके अन्तिम स्थितिकांडकको संक्रमण करनेवाले क्षपकके छह नोकपायोका जघन्य स्थितिसंक्रमण होता है ॥ ७४ ॥
चूर्णिसू ० - अव एक जीवकी अपेक्षा स्थितिसंक्रमणकालका निरूपण किया जाता है । ( स्थितिसंक्रमणकाल जघन्य और उत्कृष्ट के भेदसे दो प्रकारका है । ) उनमे से जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति- उदीरणाके कालका निरूपण किया गया है, उसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमण के कालकी प्ररूपणा जानना चाहिए । अव इससे आगे जघन्य स्थितिसंक्रमणकालका निरूपण करते हैं ।।७५-७७॥
शंका- अट्ठाईस प्रकृतियो के जघन्य स्थितिसंक्रमणका कितना काल है ? ॥ ७८ ॥ समाधान-सभी प्रकृतियोके संक्रमणका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है । विशेपता केवल यह है कि स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और हास्यादि छह तियोके जघन्य स्थितिसंक्रमणका कितना काल है ? जघन्य और है ।।७९-८१ ।। चूर्णिसू० [० - अब इससे आगे एक जीवकी अपेक्षा स्थितिसंक्रमणका अन्तर कहते है । ( वह स्थितिसंक्रमण - अन्तर जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे दो प्रकारका है ।) उनमे से जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति - उदीरणाके अन्तरका निरूपण किया गया है, उसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति - संक्रमणके अन्तरका निरूपण करना चाहिए। अब इससे आगे जघन्य स्थितिसंक्रमणका अन्तर कहते हैं । मोहनीय कर्मकी सर्व प्रकृतियोके जघन्य स्थितिसंक्रमणका अन्तर नही होता है । केवल अनन्तातुवन्धी चारों कषायोंकी जघन्य स्थिति के संक्रमणका जघन्य अन्तरकाल अन्त
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नोकपाय इन आठ प्रकृउत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त
१ कुदो १ खचयचरिमफालीए चरिमट्ठिदिखडए समयाहियावलियाए च लद्वजहण्णता मित्ताणम तरसबंधस्स अच्चताभावेण णिसिद्धत्तादो | जयध०
२ विसंजोयणाचरिमफालीए लढजहणभावस्साणताणुत्र धिचउकस्स ट्रिट्ठदिसंकमस्य सव्वजण