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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार एदमप्पायहुअस्स साहणं । २४९. एवं णवणोकसायाणं । २५०. णवरि कसायाणपाबलियूणमुक्कस्सद्विदि पडिच्छिदूणावलियादीदस्स तस्स उक्कस्सिया बड्डी । २५१. से काले उक्कस्सयमवट्ठाणं ।
२५२. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्सिया वड्डी कस्स १ २५३. वेदगसम्मत्तपाओग्गजहण्णहिदिसंतकम्मिओ मिच्छत्तस्स उक्स्सद्विदि बंधियण द्विदिधादमकाऊण अंतोसुहुत्तेण सम्मत्तं पडिवण्णो तस्स विदियसमयसम्माइद्विस्स उक्कस्मिया वड्डी । वृद्धि कही है, वह विशेष अधिक है। यह कथन वक्ष्यमाण अल्पवहुत्वका साधन है ॥२४७-२४८॥
विशेपार्थ-ऊपर जो मिथ्यात्व और सोलह कपागोकी स्थितिसंक्रमण-विषयक वृद्धि - हानिका निरूपण किया गया है और अन्तमे जो उसका अल्पवहुत्व बताया गया है, उसका स्पष्टीकरण यह है कि प्रकृत कर्मोंकी स्थितिसंक्रमण-गत उत्कृष्ट वृद्धिका प्रमाण अन्तःकोडाकोडीपरिहीन कर्मस्थितिमात्र है । तथा उत्कृष्ट हानिका प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिकांडक-प्रमाण है। उत्कृष्ट हानिसे उत्कृष्ट वृद्धि विशेष अधिक है, यहाँ विशेष अधिकका प्रमाण अन्तःकोडाकोडीमात्र जानना चाहिए।
चूर्णिम् ०-इसी प्रकार नव नोकषायोके स्थितिसंक्रमण-विषयक वृद्धि, हानि और अवस्थानकी प्ररूपणा करना चाहिए । विशेषता केवल यह है कि कषायोकी एक आवली कम उत्कृष्ट स्थितिको ग्रहण करके आवलीकाल व्यतीत करनेवाले जीवके नव नोकपायोकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । ( क्योकि नोकषायोका स्वमुखसे स्थितिबंध नहीं होता है ।) और उसके द्वितीय समयमे उत्कृष्ट अवस्थान होता है ॥२४९-२५१॥
शंका-सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ?।।२५२।।
समाधान-वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त करनेके योग्य जघन्य स्थितिकी सत्तावाला (एकेन्द्रियोसे आया हुआ ) जो जीव मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँध करके और स्थितिघातको नहीं करके अन्तर्मुहूर्तकाल द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ, उस द्वितीय समयवर्ती सम्यग्दृष्टि जीवके उक्त दोनो प्रकृतियोकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है ॥२५३॥
१ कुदो एवं कीरदे चेण, समुहेणेदेसिं चालीससागरोवमकोडाकोडीण बंधाभावेण कसायुक्कस्सठिदि. पडिग्गहमुहेण तहा सामित्तविहाणादो । तदो बधावलियूणं कसायटिदिमुक्कस्सियं सगपाओग्गतोकोडाकोडिट्ठिदिसंकमे पडिच्छियूण संकमणावलियादिकंतस्स पयदसामित्तमिदि वुत्त | xxx णवुसयवेदारइसोगभयदुगुंछाणमुक्कसछिदिवुड्ढी अवठ्ठाणं च वीससागरोवमकोडाकोडीओ पलिदोवमासखेजभागभहियाओ। कुदोः कसायाणमुक्कस्सठिदिवघकाले तेसि पि रूवूणाबाहाकंडएणूणवीससागरोवमकोडाकोडिमेत्त-ठिदिवंधस्स दुप्पडिसेहत्तादो | जयध०
२ एत्थ वेदयपाओग्गजहण्णछिदिसतकम्मिओ णाम दुविहो-किंचूणसागरोवमछिदिसतकम्मिओ तप्पुधत्तमेत्तछिदिसतकम्मिओ च । एत्थ पुण सागरोवममेत्तहिदिएइंदियपच्छायदो घेत्तव्योः उक्स्सवड्ढीए पवदत्तादो।x x x तत्थ योवूणसागरोवमसकमादो हेटिठमसमयपडिबद्धत्तादो तदूणसत्तरिसागरोवममेत्तटिदिसकमन्स बुढिदसणादो । जवध'