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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार गुणों । १४९. मिच्छत्तस्स जहण्णद्विदिसंकमो विसेसाहिओ।
१५०. भुजगारसंकमस्स अट्ठपदं काऊण सामित्तं काययं । १५१.मिच्छत्तस्स भुजगार-अप्पदर-अवढिद-संकामओ को होदि ? १५२. अण्णदरो। १५३. अवत्तव्यपायोका जघन्य स्थितिसंक्रमण परस्पर तुल्य और असंख्यातगुणित है। चारह कपाय और नव नोकषायोके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रमण विशेप अधिक है ॥१४५-१४९॥
विशेपार्थ-इसी प्रकार शेष पृथिवियोमें भी जघन्य स्थितिसंक्रमण जानना चाहिए । शेष गतियोमें और शेप मार्गणाओमें भी ओधके अल्पवहुत्वके अनुसार यथासंभव अल्पवहुत्व लगा लेना चाहिए । विस्तारके भयसे चूर्णिकारने नहीं लिखा है, सो विशेष जिज्ञासुओको जयधबला टीका देखना चाहिए ।
___ चूर्णिमू०-अब इससे आगे भुजाकार-संक्रमणका अर्थपद करके उसके स्वामित्वका निरूपण करना चाहिए ||१५०॥
विशेषार्थ-अतीत समयमे जितनी स्थितियोका संक्रमण करता था, उससे इस वर्तमान समयमे अधिक स्थितियांका संक्रमण करना भुजाकार-संक्रम है। अतीत समयमे जितनी स्थितियोका संक्रमण करता था, उससे इस वर्तमान समयमे कम स्थितियोका संक्रमण करना, यह अल्पतर-संक्रम कहलाता है । जितनी स्थितियोंका अतीत समयमे संक्रमण करता था, उतनीका ही वर्तमान समयमें संक्रमण करना, यह अवस्थित-संक्रम है । अतीत समयमे किसी भी स्थितिका संक्रमण न करके वर्तमान समयमे संक्रमण करना अवक्तव्यसंक्रम है। यह भुजाकार-संक्रमका अर्थपद है।
शंका-मिथ्यात्वके भुजाकारसंक्रम, अल्पतरसंक्रम और अवस्थितसंक्रमका करनेवाला कौन जीव है ? ॥१५१॥
समाधान-चारो गतियोमेसे किसी भी एक गतिका जीव उक्त संक्रमणोका करनेवाला होता है ॥१५२॥
चूर्णिसू०-मिथ्यात्वका अवक्तव्य संक्रमण संभव नही, इसलिए उसका संक्रामक चरिमफालीदो विसेसाहियकमेण छिदिखडयमागाएदि जाव सगचरिमठिदिखडयादो त्ति । तदो एदमेत्य विसेसाहियत्ते कारणं | जयध
१ अंतोकोडाकोडिपमाणत्तादो | जयध०
२ चालीसपडिभागियतोकोडाकोडीदो सत्तरि पडिभागियंतोकोडाकोडीए तीहि-सत्तभागेहि अहियत्तदंसणादो। जयध०
३ किं तमठ्ठपद ? बुच्चदे-अणतरोसक्काविद-विदिक्कतसमए अप्पदरसंकमादो एण्हि बहुवयर संकामेइ त्ति एसो भुजगारसंकमो। अणंतरस्सकाविदविदिक्कतसमए वहुवयरसकमादो एण्डिं थोवयराओ सकामेइ त्ति एस अप्पयरसकमो। तत्तिय तत्तिय चेव सकामेइ त्ति एसो अवठ्ठिदसक्रमो । अणतर वदि कंतसमए असकमादो सकामेदि त्ति एसो अवत्तवसकमो। एदेणठ्ठपदेण भुजगार-अप्पदर अवछिदा वत्तन्वसंकामयाणं परूवणा भुजगारसकमो त्ति वुचइ | जयध०