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गा० ५८] भुजाकारस्थितिसंक्रम-नानाजीवापेक्षयाकाल-निरूपण ३३३
१९३. णाणाजीवेहि भंगविचओ। १९४. मिच्छत्तस्स सव्वजीवा भुजगारसंकामगा च अप्पयरसंकामया च अवट्ठिदसंकामया च । १९५. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सत्तावीस भंगा । १९६. सेसाणं मिच्छत्तभंगो। १९७. णवरि अवत्तव्यसंकामया भजियव्वा ।
१९८. णाणाजीवेहि कालो । १९९. मिच्छत्तस्स भुजगार-अप्पदर-अवहिदसंकामया केवचिरं कालादो होति ? २००. सव्वद्धा । २०१. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं भुजगार-अवहिदअवत्तव्यसंकामया केवचिरं कालादो होति ? २०२. जहण्णेणेयसम्यग्मिथ्यात्वके भुजाकार, अवस्थित, अल्पतर और अवक्तव्य संक्रमणका उत्कृष्ट अन्तरकाल देशोन अर्धपुद्गलपरिवर्तन है ॥१८९-१९२॥ .
चूर्णिसू०-अब भुजाकारादि संक्रमणोका नाना जीवोकी अपेक्षा भंगविचय कहते हैं। सर्व जीव मिथ्यात्वके भुजाकार-संक्रामक है, अल्पतर-संक्रामक है, और अवस्थित संक्रामक है । सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजाकारादि संक्रमण-सम्बन्धी सत्ताईस भंग होते है । शेष पञ्चीस कषायोके भुजाकारादि संक्रमण-सम्बन्धी भंग मिथ्यात्वके समान होते हैं । केवल अवक्तव्य-संक्रामक भजितव्य हैं ॥१९३-१८७।।
विशेषार्थ-सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृतिके सत्ताईस भंगोका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-इन दोनो कर्मोंके भुजाकार, अवस्थित और अवक्तव्य संक्रामक जीव भजितव्य हैं, अर्थात् कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं । किन्तु अल्पतर-संक्रामक जीव नियमसे होते हैं। इसलिए भजितव्य पदोको विरलन कर, उन्हे तिगुणा करने पर अल्पतर-संक्रामक रूप ध्रुवपदके साथ सत्ताईस भंग हो जाते है।
चूर्णिसू०-अब भुजाकारादिसंकमोका नानाजीवोंकी अपेक्षा कालका वर्णन करते हैं ॥१९८॥
शंका-मिथ्यात्वके भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित संक्रमण करनेवाले जीवोका कितना काल है ?
समाधान-सर्व काल है ॥२००।
शंका-सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजाकार, अवस्थित और अवक्तव्यसंक्रमण करनेवाले जीवोका कितना काल है १ ॥२०१।।
१ कुदो, मिच्छत्तभुजगारादिसकामयागामणतजीवाण सध्वद्धमविच्छिण्णपवाहसरूवेणावठाणदसणादो। जयध०
२ कुदो, भुजगारावट्ठिदावत्तव्वस कामयाण भयणिजत्तणाप्पयरसकामयाण धुवत्तदसणादो। तदो भयणिजपदाणि विरल्यि तिगुणिय अण्णोण्णभासे कए धुवसहिया सत्तावीस भगा उप्पजति । जयध°
३ मिच्छत्तस्सावत्तव्वसकामया णस्थि । एदेसिं पुण अवत्तव्यसकामया अत्थि, ते च भजियव्वा त्ति उत्त होइ । जयध०
४ कुदो; तिसु वि कालेसु एदेसिं विरहाणुवलभादो । जयध०