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गा० ५६ ]
सत्त्वस्थानों में संक्रमस्थान-निरूपण
संक्रमस्थान पाया जाता है । पुनः स्त्रीवेदके क्षयकर देनेपर ग्यारह प्रकृतिक सत्त्वस्थानके साथ दश प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है । पुनः हास्यादि छह नो-कषायोके क्षपणके अनन्तर पंच-प्रकृतिक सत्त्वस्थानके साथ चार प्रकृतिक संक्रमणस्थान पाया जाता है । पुनः नवकवद्ध पुरुषवेदके क्षय हो जानेपर चार प्रकृतिक सत्त्वस्थानके साथ तीन प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है । पुनः संज्वलनक्रोधके क्षय कर देनेपर तीन- प्रकृतिक सत्त्वस्थानके साथ दोका संक्रम होता है । पुनः संज्वलनमानके क्षय कर देनेपर दो प्रकृतिक सत्त्वस्थानके साथ एक प्रकृतिका संक्रम होता है । इस प्रकार मोहनीयकर्मके सत्त्वस्थानोंके साथ संक्रमस्थानोकी मार्गणा की गई ।
मोहनीय कर्मके सत्त्वस्थानोमें संक्रमस्थानोंका चित्र
सवस्थान सक्र्मस्थान सत्त्वस्थान सक्रमस्थान सत्त्वस्थान सक्रमस्थान
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अब मोहनीय कर्म के बन्धस्थानो में संक्रमस्थानोका अनुगम करते है - अट्ठाईस प्रकृति - योंकी सत्तावाले मिथ्यादृष्टि जीवके बाईस - प्रकृतिक बन्धस्थानके साथ सत्ताईस - प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है १ । उसी जीवके द्वारा सम्यक्त्वप्रकृतिकी उद्वेलना करनेपर बाईसके बन्धस्थानके साथ छब्बीस - प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है २ । उसी जीवके द्वारा सम्यग्मिध्यात्वकी उद्वेलना कर देनेपर बाईसके ही बन्धस्थानके साथ पच्चीस - प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है ३ । अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके मिध्यात्वको प्राप्त हुए जीवके प्रथम आवलीमे बाईस-प्रकृतिक बन्धस्थानके साथ तेईस - प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है ४ । इस प्रकार बाईस प्रकृतिक वन्धस्थानमे सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस और तेईस प्रकृतिक चार संक्रमस्थान पाये जाते हैं। अब इक्कीस - प्रकृतिक वन्धस्थानमे संक्रमस्थानोकी मार्गणा करते हैं - सासादनसम्यग्दृष्टि जीवके इक्कीस - प्रकृतिक बन्धस्थानके साथ पच्चीस-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है १ । अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना- पूर्वक सासादनगुणस्थानको प्राप्त होनेवाले जीवके प्रथम आवलीमें इक्कीस - प्रकृतिक बन्धस्थानके साथ इक्कीस प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया
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सत्त्वस्थान
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सक्रमस्थान
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