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गा० ५८ ]
संक्रमस्थान - प्रकृति-निरूपण
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वसंते इत्थवेदे अणुवसंते । १५५. अट्ठारसण्हमेकावीसदिकम्मं सियस्स इत्थिवेदे उचसंते जाव छण्णोकसाया अणुवसंता ।
१५६. सत्तारसह केण कारणेण णत्थि संकमो १ १५७. खवगो एक्कावी सादो एक्कपहारेण अट्ठकसाए अवणेदि । १५८. तदो अट्टकसारसु अवणिदेसु तेरसहं संकमो होइ । १५९. उबसामगस्स वि एक्कावीसदिकम्मंसियस्स छतु कम्मेसु उबसंतेसु बारसहं संकमो भवदि । १६०. चउवीसदिकम्मंसियस्स छसु कम्मेसु उवसंतेसु चोद्दसहं संकमो भवदि । १६१. एदेण कारणेण सत्तारसहं वा सोलसण्हं वा पण्हारसहं वा संकमो णत्थि । १६२. चोहसण्हं चउवीसदिकम्मैसियस्स छसु कम्मेसु उवसामिदेसु पुरिसवेदे अणुवसंते । १६३. तेरसहं चउवी सदिकम्मंसियस्स पुरिसवेदे उवसंते कसाएसु अणुवसंतेसु । १६४. खवगस्स वा अट्टकसारसु खविदेसु जाव अणाणुपुव्वीसंकमो । १६५. इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामक के नपुंसकवेदके उपशान्त होनेपर तथा स्त्रीवेदके अनुप - शान्त रहनेपर उन्नीस - प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है । उसी इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके स्त्रीवेदके उपशान्त होनेपर जबतक हास्यादि छह नोकषाय अनुपशान्त रहती हैं, तबतक अट्ठारह-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ॥ १५१-१५५॥
शंका-सत्तरह प्रकृतियोका संक्रमण किस कारण से नहीं होता है, अर्थात् सत्तरहप्रकृतिक संक्रमस्थान क्यों नहीं होता ? ॥ १५६॥
समाधान- क्योकि, इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाला क्षपक एक ही प्रहारसे एक साथ आठ मध्यम कपायोका क्षय करता है, इसलिए इक्कीस - प्रकृतिक संक्रमस्थानमे से आठ कपायोके अपनीत करनेपर तेरह प्रकृतियोका संक्रमण होता है । इस कारण सत्तरह - प्रकृतिक संक्रमस्थान नहीं होता ।। १५७ - १५८ ॥
चूर्णिसू० - इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामक के भी हास्यादि छह कर्मोंके उपशान्त होनेपर बारह प्रकृतियोका संक्रमण होता है । चौबीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके हास्यादि छह कर्मोंके उपशान्त होनेपर चौदह प्रकृतियोका संक्रम होता है । इस कारणसे सत्तरह, सोलह और पन्द्रह प्रकृतियोका संक्रमण नहीं होता है । अतएव सत्तरह, सोलह और पन्द्रह-प्रकृतिक संक्रमस्थान नही कहे गये है ॥१५९-१६१॥
चूर्णिसू० - चौवीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले उपशामक के हास्यादि छह कर्मोंके उपशभित होनेपर और पुरुपवेदके अनुपशान्त रहनेपर चौदह प्रकृतियोका संक्रम होता है । चौबीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामक के पुरुषवेदके उपशान्त होनेपर और आठ कपायोके अनुपशान्त रहनेपर तेरह प्रकृतियोंका संक्रम होता है । अथवा क्षपकके आठ मध्यम कपायोके क्षपित होनेपर जबतक अनानुपूर्वी - संक्रम रहता है, तत्रतक तेरह प्रकृतियोका संक्रम होता है ।
१ ओदरमाणग पि समस्सियूगेदस्स टूट्ठाणस्स सभवो समयाविरोहेणाणुगतव्वो, सुत्तस्सेदस्स
देसामा सयत्तादो | जयध०