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कसाय पाहुड सुत्त
[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार
विशेषार्थ - प्रकृत सूत्रमे बतलाये गये संक्रमस्थानोके जघन्य और उत्कृष्ट कालोका स्पष्टीकरण करते है । उनमे से वाईसके संक्रमस्थानके कालकी प्ररूपणा इस प्रकार है - चौवीस प्रकृतियो की सत्तावाला कोई एक जीव उपशमश्रेणीपर चढ़ करके अन्तरकरणके अनन्तर आनुपूर्वी - संक्रमणसे परिणत हो एक समयमात्र वाईस प्रकृतिक स्थानका संक्रामक होकर और दूसरे समयमे मरण करके देवोमें उत्पन्न होकर तेईस - प्रकृतिक स्थानका संक्रामक हो गया । इस प्रकार बाईसके संक्रमस्थानका एक समयमात्र जघन्य काल उपलब्ध हो गया । इसीके उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा इस प्रकार है - कोई एक दर्शनमोहका क्षपक जीव मिथ्यात्वका क्षय करके सम्यग्मिथ्यात्वके क्षपण-कालमे वाईस - प्रकृतिक स्थानका संक्रामक हुआ और उसकी अन्तिम फालीके पतन होने तक उसका संक्रामक रहा । इस प्रकार वाईस प्रकृतिक स्थानका अन्तर्मुहूर्त - प्रमाण उत्कृष्ट काल प्राप्त हो जाता है। बीस - प्रकृतिक स्थानके संक्रम- कालकी प्ररूपणा इस प्रकार है - इक्कीस प्रकृतियोका संक्रामक कोई एक जीव उपशमश्रेणीपर चढ़ करके लोभका असंक्रामक होकर और एक समयमात्र बीसका संक्रामक वनकर तदनन्तर समयमे मरण करके देवोमें उत्पन्न होकर इक्कीसका संक्रामक हो गया । इस प्रकार एक समयमात्र जघन्य काल उपलब्ध हो जाता है । इसीके अन्तर्मुहूर्त - प्रमाण उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा इस प्रकार है-इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई एक जीव नपुंसकवेदके उदय के साथ श्रेणीपर चढ़ा और अन्तरकरण करके आनुपूर्वी संक्रमणके वशसे वीस - प्रकृतिक स्थानका संक्रामक हो गया । इस प्रकार इस जीवके नपुंसकवेदके उपशमनका जितना काल है, वह सर्व 'प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए । उन्नीस - प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालका विवरण इस प्रकार है - इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई एक जीव उपशमश्रेणीपर चढ़ा और अन्तरकरणको करके नपुंसकवेदका उपशमनकर उन्नीस - प्रकृतिक स्थानका संक्रामक हुआ । पुनः दूसरे ही समयमे मरणकर देवोमे उत्पन्न होकर इक्कीस - प्रकृतिक स्थानका संक्रामक हो गया। इस प्रकार एक समयमात्र जघन्य काल उपलब्ध हो जाता है । इसी जीवके नपुंसकवेदका उपशमन करके स्त्रीवेदके उपशमन करनेका अन्तर्मुहूर्तमान सर्वकाल प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए । अट्ठारह प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालका विवरण इस प्रकार है- इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई उपशामक नपुंसक वेद और खीवेदका उपशमकर एक समय अट्ठारह - प्रकृतिक स्थानका संक्रामक होकर और तदनन्तर समयमे मरण करके देवोमे उत्पन्न होकर इक्कीस - प्रकृतिक स्थानका संक्रामक संक्रमस्थानका जघन्यकाल प्राप्त हो गया । अनुपशान्त हैं, तब तक उनके उपाभनका उत्कृष्टकाल जानना चाहिए | तेरह-प्रकृतिक प्ररूपणा इस प्रकार है - चौबीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई उपशामक यथाक्रमसे नव नोकपायोको उपशमा कर एक समय तेरह
हो गया । इस प्रकार एक समय-प्रमाण प्रकृत उसी ही उपशामकके जब तक छह नोकपाय सर्व काल ही अट्ठारह - प्रकृतिक संक्रमस्थानका संक्रमस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालकी