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गा० ५८]
संक्रमस्थान-काल-निरूपण
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प्रकृतियोका संक्रामक रहा और तदनन्तर समयमे मरकर तेईस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। इस प्रकार एक समयमात्र जघन्य काल प्राप्त हो जाता है। क्षपक आठ मध्यम कषायोंका क्षय करके जबतक आनुपूर्वी-संक्रमणका प्रारम्भ नहीं करता है, तबतक तेरहप्रकृतिक संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए। बारह-प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य कालका विवरण इस प्रकार है-इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई उपशामक यथाक्रमसे आठ नोकपायोंका उपशम करके एक समयके लिए बारह प्रकृतियोंका संक्रामक हुआ और दूसरे समयमें मरणको प्राप्त हुआ और देवोमें उत्पन्न होकर इक्कीस-प्रकृतिक स्थानका संक्रामक हो गया । इस प्रकार एक समयमात्र जघन्य काल प्राप्त हो गया। इसी संक्रमस्थानके अन्तर्मुहूर्त प्रमित उत्कृष्ट कालका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-कोई एक संयत चारित्रमोहकी क्षपणाके लिए अभ्युद्यत हुआ और आनुपूर्वी-संक्रमण करके वह जबतक नपुंसकवेदका क्षय नहीं करता है तबतक उसके प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल पाया जाता है । ग्यारह-प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य कालका विवरण इस प्रकार है-इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई उपशामक यथाक्रमसे नव नोकपायोका उपशमन करके एक समय ग्यारहका संक्रामक रहकर और तदनन्तर समयमे मरणको प्राप्त होकर देव हो गया। इस प्रकार एक समयमात्र प्रकृत संक्रमस्थानका जघन्य काल प्राप्त हो जाता है। इसी संक्रमस्थानके अन्तर्मुहूर्त-प्रमित उत्कृष्ट कालका विवरण इस प्रकार है-कोई एक क्षपक नपुंसकवेदका क्षय करके जवतक स्त्रीवेदका क्षय नहीं करता है तबतक वह प्रकृत स्थानका संक्रामक रहता है। दशप्रकृतिक संक्रमस्थानके एक समय-प्रमित जघन्य कालका विवरण इस प्रकार है-चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक उपशामक तीन प्रकारके क्रोधकी उपशामनासे परिणत होकर एक समय दश प्रकृतियोका संक्रामक रहा और दूसरे समयमें मरकर और देवोमे उत्पन्न होकर तेईस प्रकृतियोका संक्रामक हो गया। इस प्रकार प्रकृत स्थानका जघन्य काल सिद्ध हो जाता है । क्षपकके छह नोकपायोके क्षपणका सर्व काल ही दश-प्रकृतिक संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए। आठ-प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालका विवरण इस प्रकार है-चौवीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई उपशामक दोनो मध्यम मान कषायोका उपशमन करके एक समय आठका संक्रामक होकर और दूसरे समयमे मर कर देवोंमे उत्पन्न हो गया। इस प्रकार एक समयमात्र जघन्यकाल प्राप्त हो जाता है । इसी स्थानके उत्कृष्ट संक्रम-कालका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई एक उपशामक क्रमसे नव नोकपाय और तीन प्रकारके क्रोधका उपशमन करके आठ-प्रकृतिक स्थानका संक्रासक हुआ और अन्तर्मुहूर्त तक उस अवस्थामे रह कर दोनो मध्यम मानकषायोका उपशमन करके छह प्रकृतियोका संक्रामक हो गया इस प्रकार आठ-प्रकृतिक संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल दोनो मध्यम मान-कपायोके उपशमनकाल-प्रमित अन्तर्मुहूर्तमात्र जानना चाहिए । सात-प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालका विवरण