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गो० ५८]
संक्रमस्थान-प्रकृति-निरूपण १३४. अट्ठावीसं केण कारणेण ण संकमइ ? १३५ दंसणमोहणीय-चरित्तमोहणीयाणि एक्के कम्मि ण संकमंति । १३६. तदो चरित्तमोहणीयस्स जाओ पयडीओ बझंति, तत्थ पणुवीसं पि संकमंति । १३७, दंसणयोहणीयस्स उक्कस्सेण दो पयडीओ संकमंति । १३८. एदेण कारणेण अट्ठावीसाए णत्थि संकमो।
१३९. सत्तावीसाए काओ पबडीओ ? १४०. पणुवीसं चरित्तमोहणीयाओ, दोणि दंसणमोहणीयाओ। १४१. छब्धीसाए सम्पत्ते उव्वेल्लिदे । १४२. अहवा पढमसमयसम्मत्ते उप्पाइदे । १४३. पणुवीसाए सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तेहि विणा सेसाओ ।
१४४, चउवीसाए किं कारणं णत्थि ? १४५, अणंताणुवंधिणो सब्वे अवणिज्जंति । १४६. एदेण कारणेण चउवीसाए णत्थि । १४७. तेवीसाए अणंताणुबंधीसु
अब संक्रमके योग्य-अयोग्य स्थानोका स्पष्टीकरण करते हैशंका-अट्ठाईस-प्रकृतिक स्थानका संक्रमण किस कारणसे नहीं होता ? ॥१३४॥
समाधान-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयकी प्रकृतियाँ परस्पर एक-दूसरेमे नही संक्रमण करती है, इसलिए चारित्रमोहनीयकी जो प्रकृतियाँ बंधती है, उनमे पच्चीसो ही प्रकृतियाँ संक्रमित हो जाती है। दर्शनमोहनीयकी अधिक-से-अधिक दो प्रकृतियाँ संक्रमण करती है। इसका कारण यह है कि अट्ठाईस प्रकृतियोकी सत्तावाले मिथ्यादृष्टि जीवमे मिथ्यात्वके प्रतिग्रह-प्रकृतिक होनेसे उसमे सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति इन दोनोंका संक्रम पाया जाता है। तथा सम्यग्दृष्टि जीवमे सम्यक्त्वप्रकृतिके प्रतिग्रहरूप होनेसे उसमे मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका संक्रम देखा जाता है, इस कारणसे अट्ठाईस-प्रकृतिक स्थानका संक्रमण नही होता है ॥ १३५-१३८॥
शंका-सत्ताईस-प्रकृतिक स्थानमे कौनसी प्रकृतियाँ होती है ? ।।१३९।।
समाधान-चारित्रमोहनीयकी पच्चीस प्रकृतियाँ, तथा दर्शनमोहनीयकी मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व, अथवा सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति, ये दो प्रकृतियाँ होती है ॥१४०॥
चूर्णिसू०-सत्ताईस प्रकृतियोके संक्रामक मिथ्याष्टिके द्वारा सम्यक्त्वप्रकृतिकी उद्वेलनाकर देनेपर शेप प्रकृतियोके समुदायात्मक छब्बीस-प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है। अथवा प्रथमोपशमसम्यक्त्वके उत्पन्न करनेपर प्रथमसमयवर्ती उपशमसम्यक्त्वीके भी छब्बीस-प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है। क्योकि, उस समय मिथ्यात्वका सम्यग्मिथ्यात्व
और सम्यक्त्वप्रकृतिमें संक्रमण पाया जाता है। किन्तु उस समय सम्यग्मिथ्यात्वका संक्रमण नही पाया जाता । पञ्चीस-प्रकृतिक स्थानमे सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके विना शेप प्रकृतियाँ होती है ॥१४१-१४३॥
शंका-चौबीस-प्रकृतिक संक्रमस्थान नहीं होनेका क्या कारण है ? ॥ १४४॥ समाधान-अनन्तानुवन्धीकी सभी प्रकृतियाँ एक साथ ही विसंयोजित की जाती है,