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कसाय पाहुड सुत्त
[५ संक्रम-अर्थाधिकार
प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ४ । क्षपकके द्वारा संज्वलनमानके वन्ध-विच्छेद कर देनेपर उसके नवकबन्ध-संक्रमणकी अपेक्षा दो-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है। और उसके निःशेष क्षय कर देनेपर एक-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है । इस प्रकार दो-प्रकृतिक वन्धस्थानमे आठ, सात, छह, पाँच, दो और एक-प्रकृतिक छह संक्रमस्थान पाये जाते है। अब एक-प्रकृतिक बन्धस्थानमें पाये जानेवाले संक्रमस्थानोंका -निरूपण करते है-चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके द्वारा दोनो मध्यम मानकपायोके उपशम करनेपर संज्वलनमायाके नवकबन्धके साथ पॉच-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है १ । पुनः संज्वलनमायाके उपशम कर देनेपर चार-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है २ । इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके द्वारा दोनों मध्यम मायाकषायोके उपशम करनेपर संज्वलनमायाके नवकवन्धके साथ तीन-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ३ । संज्वलनमायाके उपशम कर देनेपर दो प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ४ । और एक संज्वलनलोभका वन्ध करनेवाले क्षपकके संज्वलनमायाके संक्रमणरूप एकप्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है । इस प्रकार एक-प्रकृतिक बन्धस्थानमे पाँच, चार, तीन, दो और एक-प्रकृतिक पॉच संक्रमस्थान पाये जाते है। इस प्रकार बन्वस्थानोमें संक्रमस्थानोकी प्ररूपणा समाप्त हुई।
मोहनीयकर्मके बन्धस्थानीमें संक्रमस्थानोका चित्र
सक्रमस्थान
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१७
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बन्धस्थान सक्रमस्थान
बन्धस्थान २७, २६, २५, २३
| २३,२२,२१,२०,१९,१८,१३,१२,११,१० २५, २१
| १४, १३, १२, ११, ४, ३ २७, २६, २५, २३, २२, २१ । ३ । ११, १०, ९, ८,३,२ | २७, २६, २३, २२, २१ ।
८,७, ६, ५, २,१ ९ २७, २६, २३, २२, २१ ।
___ उपर्युक्त प्रकारसे एक-संयोगी भंगोकी प्ररूपणा करके अब बन्ध और सत्त्व इन दोनोको आधार बनाकर संक्रमस्थानोके द्विसंयोगी भंगोकी प्ररूपणा करते हैं-अट्ठाईस-प्रकृतिक सत्त्वस्थानके साथ वाईस-प्रकृतिक वन्धस्थानमे सत्ताईस, छब्बीस और तेईस-प्रकृतिक तीन संक्रमस्थान पाये जाते है । अट्ठाईस-प्रकृतिक सत्त्वस्थानके साथ इक्कीस-प्रकृतिक बन्धस्थानमै पच्चीस और इक्कीस-प्रकृतिक दो संक्रमस्थान होते है। इसी सत्त्वस्थानके साथ सत्तरहप्रकृतिक बन्धस्थानमे सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस और तेईस-प्रकृतिक चार संक्रमस्थान पाये जाते है । अट्ठाईसके सत्त्वस्थानके साथ तेरह और नौ-प्रकृतिक वन्धस्थानोमे सत्ताईस, छब्बीस और तेईस-प्रकृतिक तीन तीन संक्रमस्थान पाये जाते हैं। ऊपरके वन्धस्थानोमे अट्ठाईस-प्रकृतिक सत्त्वस्थानके साथ द्विसंयोगी भंग सम्भव नहीं है । इस प्रकारसे एक एक सत्त्वस्थानके साथ यथासम्भव वन्धस्थानोको संयुक्त करके संक्रमस्थानोका अनुमार्गण करना चाहिए । अथवा एक एक बन्धस्थानके साथ यथासम्भव सत्त्वस्थानोको संयुक्त करके भी संक्रमस्थानोकी मार्गणा की जा सकती है । इसी प्रकार एक एक सत्त्वस्थानको आधार बनाकर