________________
गा० ५६]
वन्धस्थानों में संक्रमस्थान-निरूपण
२८५
होता है ४ । पुनः इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके आनुपूर्वीसंक्रमण करके नपुंसकवेदके उपशम करनेपर उन्नीस-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ५ । उसीके द्वारा स्त्रीवेदका उपशमन कर देनेपर अट्ठारह-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ६ । क्षपकके द्वारा आठ मध्यम कषायोके क्षयकर देनेपर तेरह-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ७ । अन्तरकरण करके आनुपूर्वीसंक्रमणके करनेपर बारह-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ८ । नपुंसकवेदके क्षय कर देनेपर ग्यारह-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ९ । स्त्रीवेदके क्षय कर देनेपर दश-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है १० । इस प्रकार पाँच-प्रकृतिक वन्धस्थानमे तेईस, बाईस, इक्कीस, बीस, उन्नीस, अट्ठारह, तेरह, बारह, ग्यारह और दश-प्रकृतिक दश संक्रमस्थान पाये जाते हैं। अव चार-प्रकृतिक बन्धस्थानमे संक्रमस्थानोकी गवेपणा करते है-चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके द्वारा छह नोकषायोका उपशम कर दिये जानेपर चार-प्रकृतिक वन्धस्थानके साथ चौदह-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है १ । पुनः उसीके पुरुपवेदका उपशम हो जानेपर तेरह-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है २ । इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके द्वारा छह नोकपायोका उपशम कर दिये जानेपर वारह-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है । उसीके द्वारा पुरुषवेदका उपशम कर दिये जानेपर ग्यारह-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ४ । क्षपक संयतके द्वारा छह नोकषायोका क्षय कर देनेपर चार-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ५ । उसीके द्वारा पुरुपवेदका क्षय कर देनेपर तीन-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ६ । इस प्रकार चार-प्रकृतिक बन्धस्थानमे चौदह, तेरह, बारह, ग्यारह, चार और तीन-प्रकृतिक छह संक्रमस्थान पाये जाते है। अव तीन-प्रकृतिक वन्धस्थानमे संक्रमस्थानोकी प्ररूपणा करते हैचौबीस प्रकृतियोकी सत्तावाले जीवके द्वारा संज्वलनक्रोधके वन्ध-व्युच्छेद कर देनेपर शेष संज्वलन-त्रिकके बन्धस्थानके साथ ग्यारह-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है १ । पुनः संज्वलनक्रोधके उपशम कर देनेपर दश-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है २ । इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले जीवके द्वारा दोनो मध्यम क्रोधकपायोके उपशम करनेपर नौ-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है ३ । उसीके द्वारा संज्वलनक्रोधका उपशमकर देनेपर आठ-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है ४ । क्षपकके द्वारा संज्वलनक्रोधके वन्ध-व्युच्छेद कर दिये जानेपर तीन-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है ५ । पुनः उसी क्षपकके द्वारा संज्वलनक्रोधके क्षय कर दिये जानेपर दो-प्रकृतिक संक्रमस्थान पाया जाता है ६ । इस प्रकार तीन-प्रकृतिक बन्धस्थानमे ग्यारह, दश, नौ, आठ, तीन और दो-प्रकृतिक छह संक्रमस्थान पाये जाते हैं। अव दोप्रकृतिक बन्धस्थानमे संक्रमस्थानोका अन्वेपण करते है-चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके द्वारा दोनो मध्यम मानकपायोके उपशम कर देनेपर आठ-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है १ । उसीके द्वारा संज्वलनमानके उपशम कर देनेपर सात-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है २ । इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके द्वारा दोनो मध्यम मानकपायोके उपशम कर देनेपर छह-प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है ३ । पुनः संज्वलनमानके उपशम कर देनेपर पॉच.