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प्रकृति-संक्रामक अन्तर - निरूपण
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गा० २६ ]
सादिरेयाणि । ६४. सेसाणं पि पणुवीसं पयढीणं संकामयस्स तिणि भंगा । ६५. तत्थ जो सो सादिओ सपज्जवसिदो, जहण्णेण अंतोमुद्दत्तं । उक्कस्सेण उबडूपोग्गल - परिय ं ।
६६. एयजीवेण अंतरं । ६७. मिच्छत्त-सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणं संकामयं तरं केवचिरं कालादो होदि १ ६८. जहणेण अंतोमुहुत्तं । ६९ उकस्सेण उवडूपोग्गलपरियङ्कं । ७०. णवरि सम्मामिच्छत्तस्त संकामयंतरं जणेण एयसमओ |
७१. अनंताणुबंधी संकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि ९ ७२. जहण्णेण अंतोमुहुत्तं । ७३. उकस्सेण वे छावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । ७४. सेसाणमेकवीसा पडणं कामयंतरं केवचिरं कालादो होड़ १ ७५. जहण्णेण एयसमओ । ७६. उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
७७. णाणाजीवेहि भंगविचओ ७८. जेसिं पयडीणं संतकम्ममत्थि तेसु पयदं । ७९. मिच्छत्त - सम्मत्ताणं सव्वजीवा णियमा संकामया च असंकामया च । चूर्णिसू० - चारित्रमोहनीयकी शेष पच्चीस प्रकृतियो के संक्रमणकालके तीन भंग हैअनादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादि- सान्त । इनमें जो सादि - सान्तकाल है, उसकी अपेक्षा उक्त प्रकृतियो के संक्रमणका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल उपाधपुद्गल - परिवर्तन है ।। ६४-६५॥ चूर्णिसू०. ० - अब एक जीवकी अपेक्षा प्रकृति-संक्रमणका अन्तर कहते हैं ॥ ६६ ॥ शंका- मिध्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृतिके संक्रमणका अन्तरकाल कितना है ? ॥६७॥
समाधान- इन तीनो प्रकृतियोके संक्रमणका जधन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्धपुद्गल परिवर्तन है । केवल सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रमणका जघन्य अन्तरकाल एक समय होता है ।। ६८-७० ॥
शंका- अनन्तानुबन्धी कपायोके संक्रमणका अन्तरकाल कितना है ? ॥७१॥ समाधान - अनन्तानुवन्धी कपायोके संक्रमणका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक दो वार छ्यासठ सागरोपम है ।।७२-७३ ॥
शंका- चारित्रमोहनीयकी शेष इक्कीस प्रकृतियो के संक्रमणका अन्तरकाल कितना ? ॥ ७४ ॥
समाधान - चारित्रमोहनीयकी शेष इक्कीस प्रकृतियोके संक्रमणका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ७५-७६ ॥
चूर्णि सू (० - अब नानाजीवोकी अपेक्षा प्रकृति-संक्रामकका भंग-विचय कहते है - जिन प्रकृतियोंका सत्कर्म अर्थात् सत्त्व है, उनमे ही भंग-विचय प्रकृत है । मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृतिके सर्व जीव नियमसे संक्रामक भी होते हैं, और असंक्रामक भी होते हैं । सम्य
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