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गा० ४३] मार्गणाओंमें संक्रमस्थान-निरूपण
२७३ णिरयगइ-अमर-पंचिंदिएमु पंचव संकमट्ठाणा। सब्वे मणुसगईए सेसेसु तिगं असण्णीसु ॥४२॥ चदुर दुगं तेवीसा मिच्छत्त मिस्सगे य सम्मत्ते। बावीस पणय छक्कं विरदे मिस्से अविरदे य ॥४३॥
अब ग्रन्थकार उक्त दो गाथाओके द्वारा उठाये गये प्रश्नोका समाधान करते हुए सबसे पहले गतिमार्गणामे संक्रमस्थानोका निरूपण करते है
नरकगति, देवगति और संज्ञिपंचेन्द्रियतिर्यंचोंमें सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस, तेईस और इक्कीस-प्रकृतिक पाँच ही संक्रमस्थान होते हैं। मनुष्यगतिमें सर्व ही संक्रमस्थान होते हैं। शेष एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रियों में सत्ताईस, छब्बीस और पच्चीस-प्रकृतिक तीन ही संक्रमस्थान होते हैं ॥४२॥
विशेषार्थ-इस गाथाके द्वारा चारो गतियोमे संक्रमस्थानोका वर्णन तो स्पष्टरूपसे किया गया है, साथ ही 'असंज्ञी' पदके द्वारा इन्द्रियमार्गणा, कायमार्गणा, योगमार्गणा और संज्ञिमार्गणामें भी देशामर्शकरूपसे संक्रमस्थानोकी भी सूचना की गई है। उनकी प्ररूपणा सुगम होनेसे ग्रन्थकारने नही की है।
अब ग्रन्थकार सम्यक्त्वमार्गणा और संयममार्गणामे संक्रमस्थानोका निरूपण करते है
मिथ्यात्व गुणस्थानमें सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस और तेईस-प्रकृतिक चार संक्रमस्थान होते हैं । मिश्रगुणस्थानमें पच्चीस और इक्कीस-प्रकृतिक दो संक्रमस्थान होते हैं । सम्यक्त्व-युक्त गुणस्थानोंमें तेईस संक्रमस्थान होते हैं। संयम-युक्त प्रमत्तसंयतादिगुणस्थानोंमें बाईस संक्रमस्थान होते हैं । मिश्र अर्थात् संयतासंयतगुणस्थानमें सत्ताईस, छब्बीस, तेईस, बाईस और इक्कीस-प्रकृतिक पॉच संक्रमस्थान होते हैं। अविरतगुणस्थानमें सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस, तेईस, बाईस और इक्कीस-प्रकृतिक छह संक्रमस्थान होते हैं ॥४३॥
विशेषार्थ-इस गाथाके द्वारा बतलाये गये संक्रमस्थानोका विवरण इस प्रकार हैसम्यक्त्वमार्गणाकी अपेक्षा मिथ्याष्टिके २७, २६, २५ और २३ प्रकृतिक चार संक्रमस्थान होते हैं। सासादनसम्यग्दृष्टिके २५ और २१ प्रकृतिक दो संक्रमस्थान होते है । सम्यग्मिथ्याष्टिक २५ और २१ प्रकृतिक दो संक्रमस्थान होते हैं। सम्यग्दृष्टिके सर्वसंक्रमस्थान पाये जाते हैं । पच्चीस-प्रकृतिक संक्रमस्थानका निरूपण अट्ठाईस प्रकृतियोकी सत्तावाले और उपशमसम्यक्त्वसे गिरे हुए सासादन-सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा किया गया है । संयममार्गणाकी अपेक्षा सामायिक-छेदोपस्थापनासंयतके पच्चीस-प्रकृतिक संक्रमस्थानको छोड़कर शेष बाईस संक्रमस्थान पाये जाते है। परिहारविशुद्धिसंयतके २७, २३, २२ और २१ प्रकृतिक चार संक्रमस्थान होते हैं। समसाम्पराय और यथाख्यातसंयतके चौबीस प्रकृतियोकी
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