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गा० ४५] मार्गणाओंमें संक्रमस्थान-निरूपण
२७५ स्थानका संक्रामक हुआ ६ । पुनः दोनो मायाकषायोका उपशम करनेपर पॉच-प्रकृतिक स्थानका संक्रामक हुआ ७ । पुनः संज्वलनमायाका उपशम करनेपर चार-प्रकृतिक स्थानका संक्रामक हुआ ८ । तदनन्तर दो प्रकारके लोभका उपशम करता हुआ दो-प्रकृतिक स्थानका संक्रामक हुआ ९ । इस प्रकार ये नौ संक्रमस्थान पुरुपवेदके साथ श्रेणीपर चढ़े हुए चौबीस प्रकृतियोकी सत्तावाले अपगतवेदी जीवके पाये जाते हैं। जो इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाला जीव पुरुषवेदके साथ उपशमश्रेणीपर चढ़ता है उसके आनुपूर्वी-संक्रमणके अनन्तर नपुंसकवेद, स्त्रीवेद और हास्यादि छह नोकषायोके उपशम करनेपर अपगतवेदीके वारह-प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होता है । पुनः दो प्रकारके क्रोध, दो प्रकारके मान और दो प्रकारके माया कषायोंके उपशमानेपर यथाक्रमसे नौ, छह और तीन-प्रकृतिक संक्रमस्थान उत्पन्न होते हैं । इन चार संक्रमस्थानोको पूर्वोक्त नौ संक्रमस्थानोमे मिला देनेपर अपगतवेदीके तेरह संक्रमस्थान हो जाते है । पुनः उसी जीवके नपुंसकवेदके उदयसे श्रेणी चढ़नेपर आनुपूर्वीसंक्रमके अनन्तर नपुंसकवेद और स्त्रीवेदका उपशमन करके अपगतवेदी होनेपर अट्ठारह-प्रकृतिक एक अपुनरुक्त संक्रमस्थान पाया जाता है। इसी जीवके श्रेणीसे उतरते समय बारह कपाय और सात नोकपाय इन उन्नीस प्रकृतियोका अपकर्षण करते हुए उन्नीस-प्रकृतिक अपुनरुक्त संक्रमस्थान पाया जाता है। इन दोनो संक्रमस्थानोको पूर्वोक्त तेरहमे मिलानेपर अपगतवेदीके पन्द्रह संक्रमस्थान हो जाते है। इसी प्रकार जो चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाला जीव नपुंसकवेदके साथ श्रेणीपर चढ़ता है, उसके चढ़ते और उतरते हुए क्रमशः बीस और उन्नीस-प्रकृतिक दो अपुनरुक्त संक्रमस्थान पाये जाते हैं। इन्हे पूर्वोक्त पन्द्रहमे मिलानेपर अपगतवेदी जीवके सत्तरह संक्रमस्थान हो जाते है। जो क्षपक जीव पुरुपवेद या नपुंसकवेदके साथ श्रेणीपर चढ़ता है, उसके अन्तिम एक-प्रकृतिक अपुनरुक्त संक्रमस्थान होता है। उसे पूर्वोक्त सत्तरहमें मिला देनेपर अपगतवेदी जीवके अट्ठारह संक्रमस्थान हो जाते है । नपुंसकवेदके नौ संक्रमस्थान होते हैं। उनमेसे सत्ताईससे लेकर इक्कीस तकके छह संक्रमस्थान तो नपुंसकवेदीके श्रेणीसे नीचे ही पाये जाते है । तथा इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके आनुपूर्वी-संक्रमणकी अपेक्षा वीस-प्रकृतिक संक्रमस्थान भी श्रेणीके पूर्व ही पाया जाता है । पुनः नपुंसकवेदके उदयसे श्रेणीपर चढ़नेवाले क्षपकके आठ मध्यम कपायोके क्षपण करनेपर तेरह-प्रकृतिक संक्रमस्थान प्राप्त होता है । आनुपूर्वीसंक्रमसे परिणत इसी जीवके वारह-प्रकृतिक संक्रमस्थान भी पाया जाता है। इस प्रकार नपुंसकवेदीके २७, २६, २५, २३, २२, २१, २०, १३ और १२ ये नौ संक्रमस्थान पाये जाते है। शेप संक्रमस्थानोका पाया जाना इसके सम्भव नहीं है। स्त्रीवेदी जीवके ग्यारह संक्रमस्थान होते है। उसके नौ संक्रमस्थानोकी प्ररूपणा तो नपुंसकवेदीके ही समान है। विशेप इसके उन्नीस और ग्यारह-प्रकृतिक दो संक्रमस्थान और अधिक है, क्योकि, इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामक और क्षपकके स्त्रीवेदके उदयके साथ श्रेणी पर चढ़कर नपुंसकवेदके उपशम और क्षपण करनेपर यथाक्रमसे उनके उन्नीस