________________
गा० २८] प्रकृति-प्रतिग्रहस्थान-निरूपण
२६१ सोलसग बारसट्टग वीसं वीसं तिगादिगधिगा य । एदे खलु मोत्तूणं सेसाणि पडिग्गहा होति ॥२८॥
विशेषार्थ-मोहनीयकर्मके सर्व प्रकृतिस्थान अट्ठाईस होते हैं । उनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-२८, २७, २६, २५, २४, २३, २२, २१, २०, १९, १८, १७, १६, १५, १४, १३, १२, ११, १०, ९, ८, ७, ६, ५, ४, ३, २ और १ । इनमेसे संक्रमणके अयोग्य ये पॉच स्थान है-२८, २४, १७, १६, और १५ । शेष तेईस स्थान संक्रमणके योग्य माने गये हैं। उनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-२७, २६, २५, २३, २२, २१, २०, १९, १८, १४, १३, १२, ११, १०, ९, ८, ७, ६, ५, ४, ३, २ और १ । किस प्रकृतिके घटाने या बढ़ानेसे कौनसा स्थान बनता है, इसका स्पष्टीकरण आगे चूर्णिकारने स्वयं किया है।
सोलह, बारह, आठ, बीस, और तीनको आदि लेकर एक-एक अधिक बीस अर्थात् तेईस, चौवीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस और अट्ठाईस प्रकृतिक स्थान प्रतिग्रहके अयोग्य हैं, अतएव इन दशों अप्रतिग्रहस्थानोंको छोड़कर शेष अट्ठारह प्रतिग्रह-स्थान होते हैं ॥२८॥
विशेषार्थ-जिस आधारभूत प्रकृतिमें अन्य प्रकृतिके परमाणुओका संक्रमण होता है, उसे प्रतिग्रहप्रकृति कहते हैं। इसी प्रकार मोहनीयकर्मके जिन प्रकृतिस्थानीका जिन प्रकृतिस्थानोमे संक्रमण होता है, वे प्रतिग्रहस्थान कहलाते है और जिन प्रकृतिस्थानोमे संक्रमण नहीं होता है, वे अप्रतिग्रहस्थान कहलाते है । प्रकृत गाथामे इन्ही प्रतिग्रह और अप्रतिग्रहस्थानोका निरूपण किया गया है । प्रतिग्रहस्थान अट्ठारह है । वे इस प्रकार है-२२, २१, १९, १८, १७, १५, १४, १३, ११, १०, ९, ७, ६, ५, ४, ३, २, १। अप्रतिग्रहस्थान दश है। वे इस प्रकार है-२८, २७, २६, २५, २४, २३, २०, १६, १२, ८ । मोहनीयकी अट्ठाईस प्रकृतियोमेसे सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिध्यात्वका वन्ध नही होता, इसलिए छब्बीस प्रकृतियाँ शेप रहती हैं। उनमे भी एक समयमे तीन वेदोमेंसे किसी एक, तथा हास्य-रति और अरति-शोक युगलोमेंसे किसी एकका बन्ध संभव है, इसलिए मिथ्याष्टिके एक समयमे शेष बाईस प्रकृतियोका बन्ध होता है । यह वाईस-प्रकृतिक पहला प्रतिग्रहस्थान है, क्योकि, इन बँधनेवाली सर्व प्रकृतियोमें सत्तामें स्थित सर्व प्रकृतियोका संक्रमण होता है । यहाँ यह बतला देना आवश्यक है कि एक समयमें तेईस आदि प्रकृतियोका वन्ध नही होता, अतः तेईस, चौबीस पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस और अट्ठाईस-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान नहीं होते हैं। इसलिए गाथामे इनका निषेध किया गया है। वाईस-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमेसे मिथ्यात्वकी बन्ध-व्युच्छित्ति हो जानेपर या मिथ्यात्वके प्रतिग्रह-प्रकृति न रहनेपर इक्कीस प्रकृ
१ सोलह बारसट्ठग वीसग तेवीसगाइगे छच्च ।
वजिय मोहस्स पडिग्गहा उ अद्वारस हवति ॥ ११ ॥ कम्मप० स०