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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार वावीस पण्णरसगे सत्तग एकारसूणवीसाए ।
तेवीस संकमो पुण पंचसु पंचिंदिएसु हवे ॥३१॥ में होता है । तथा दृष्टिगत अर्थात् 'दृष्टि' यह पद जिनके अन्तमें हैं, ऐसे मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि, इन तीनों ही गुणस्थानोंमें वह पच्चीसप्रकृतिक संक्रमस्थान नियमसे पाया जाता है ॥३०॥
विशेषार्थ-इस गाथामें पच्चीस-प्रकृतिक एक संक्रमस्थानके इक्कीस और सत्तरहप्रकृतिक दो प्रतिग्रहस्थान वताये गये है। इनमेसे इक्कीस-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे छब्बीस प्रकृतियोकी सत्तावाले मिथ्यादृष्टि जीवके मिथ्यात्वके विना पञ्चीस प्रकृतियोका संक्रमण होता है । तथा अट्ठाईस प्रकृतियोकी सत्तावाले सासादनसम्यग्दृष्टि जीवके इक्कीस-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे पञ्चीस प्रकृतियोंको संक्रमण होता है। यहाँ दर्शनमोहनीयकी तीनो प्रकृतियोमे प्रतिग्रह
और संक्रमण शक्ति नहीं है, इतना विशेप जानना चाहिए । तथा अट्ठाईस प्रकृतियोकी सत्तावाला जो मिथ्याष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीच सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त होता है, उसके चारित्रमोहनीयकी पच्चीस प्रकृतियोका सत्तरह-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे संक्रमण होता है । ये संक्रमस्थान और प्रतिग्रहस्थान चारो गतियोमें संभव हैं ।
तेईस-प्रकृतिक स्थानका संक्रम वाईस, पन्द्रह, सत्तरह, ग्यारह और उन्नीसप्रकृतिक इन पॉच प्रतिग्रहस्थानोंमें होता है। यह तेईस प्रकृतिक संक्रमस्थान संज्ञी पंचेन्द्रियों में ही होता है ॥३१॥
विशेपार्थ-इस गाथामे एक तेईस-प्रकृतिक संक्रमस्थानका पाँच प्रतिग्रहस्थानोमे संक्रमण-विधान किया गया है। अनन्तानुबन्धीका विसंयोजक जो जीव मिथ्यात्वगुणस्थानको प्राप्त होता है, उसके प्रथम समयमे बाईस-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमें अनन्तानुवन्धीचतुष्क और मिथ्यात्वके विना तेईस प्रकृतियोका संक्रमण होता है। मिथ्यात्वगुणस्थानमे मिथ्यात्वका संक्रमण न होनेसे उसका निषेध किया है और ऐसे जीवके अनन्तानुबन्धीचतुष्कका एक आवलीकाल तक संक्रमण नही हो सकता, इसलिए उसका निषेध किया है। शेप तेईस प्रकृतियोका संक्रमण होता है। तथा चौबीस प्रकृतियाकी सत्तावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवके उन्नीस-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे, चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाले संयतासंयत जीवके पन्द्रह-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे, चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाले प्रमत्तसंयत अप्रमत्तसंयत जीवके ग्यारह-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे और चौबीस प्रकृतियोकी सत्तावाले अन्तरकरणसे पूर्ववर्ती अनिवृत्तिकरण जीवके सात-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे तेईस प्रकृतियोका संक्रमण होता है; क्योकि, इन सब जीवोके चौवीस प्रकृतियोकी सत्ता पाई जाती है, इसलिए यहाँ एक सम्यक्त्वप्रकृतिको छोड़कर शेप तेईस प्रकृतियोका उक्त सभी प्रतिग्रहस्थानोमे संक्रमण संभव है । ऐसा जीव जिसने अनन्तानुवन्धीकी विसंयोजना की है, वह नियमसे संज्ञी पंचेन्द्रिय ही होता है । १ बावीस पन्नरसगे सत्तगएक्कारसिगुणवीसासु । तेवीसाए णियमा पच वि पचिदिएसु भवे ॥१४॥ कम्मप०सं०