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कसाय पाहुडे सुप्त
[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार
तिक प्रतिग्रहस्थान होता है । असंयतसम्यग्दृष्टि के सत्तरह प्रकृतियों का बन्ध होता है । उनमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के मिला देनेपर उन्नीस - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । वन्धपरिपाटीको देखते हुए एक साथ बीस प्रकृतियाँ प्रतिग्रहरूप नहीं हो सकती, इसलिए वीसप्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानका निषेध किया गया है । क्षायिकसम्यक्त्व के प्रस्थापक असंयतसम्यग्दृष्टि जीवके मिथ्यात्वका क्षय हो जानेपर सम्यग्मिथ्यात्व प्रतिग्रह - प्रकृति नही रहती, इसलिए पूर्वोक्त उन्नीस- प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे से सम्यग्मिथ्यात्वके कम कर देनेपर अट्ठारह - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । पुनः उक्त जीवके सम्यग्मिथ्यात्वका क्षय हो जानेपर सम्यक्त्व प्रकृति के प्रति - ग्रहरूप न रहने के कारण सत्तरह - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवके दर्शनमोहनीयकी किसी भी प्रकृतिका संक्रमण नहीं होता, अतः उसके दर्शनमोहनीयकी तीनो प्रकृतियोकी सत्ता रहनेपर भी यह सत्तरह - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । संयतासंयतके एक साथ तेरह प्रकृतियोंका वन्ध होता है, उनमे सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृतिके मिला देनेपर पन्द्रह-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । बन्ध-परिपाटीको देखते हुए सोलह - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान संभव नहीं, यह स्पष्ट ही है । इसी प्रकार वारह और आठ - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान संभव नहीं है । जब कोई संयतासंयत जीव मिथ्यात्वका क्षय करता है, तब उसके सम्यमिथ्यात्व के विना चौदह - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है और इसी जीवके द्वारा सम्यग्मिध्यात्वका क्षय कर देनेपर तेरह - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । प्रमत्त और अप्रमत्त संयत के नौ प्रकृतिका वन्ध होता है, अतएव इनमे सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति के मिला देनेपर ग्यारह - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । पुनः इस जीवके मिथ्यात्वके क्षय कर देनेपर दश प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है और इसीके सम्यग्मिथ्यात्वका क्षय हो जानेपर नौ- प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । अपूर्वकरणमे भी नौ प्रकृतियोका बन्ध होता है, इसलिए उपशमसम्यग्दृष्टि के इन नौ प्रकृतियो मे सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृतिके मिलानेपर ग्यारह - प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थान होता है, और क्षायिकसम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिध्यात्व के विना नौ- प्रकृतिक भी प्रतिग्रहस्थान होता है । चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाले अनिवृत्तिकरण उपशामक के पाँच प्रकृतियोका बन्ध होता है, अतएव इनमे सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति के मिला देनेपर सात - प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थान होता है । पुनः नपुंसकवेद और स्त्रीवेदके उपशम हो जानेपर पुरुपवेद प्रतिग्रह - प्रकृति नहीं रहती, इसलिए इसीके छह - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । अनन्तर दोनो प्रकारके मध्यम क्रोधोंका उपशम हो जानेपर संज्वलनक्रोध • प्रतिग्रह - प्रकृति नही रहती, इसलिए पॉच - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । अनन्तर दोनो मानकपायोका उपशम हो जानेपर मानसंज्वलन प्रतिग्रह - प्रकृति नहीं रहती, इसलिए चार प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । अनन्तर दोनो मायाकषायोके उपशम हो जानेपर मायासंज्वलन प्रतिग्रह - प्रकृति नही रहती, इसलिए तीनप्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान होता है । पुनः इसके दोनो लोभकपायोका उपशम हो जानेपर संज्व
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