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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार एत्तो अवसेसा संजमम्हि उवसामगे च खवगे च ।
वीसा य संकम दुगे छक्के पणगे च बोद्धव्वा ॥३४॥ स्थानमे सात-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान संभव है, क्योकि, आनुपूर्वीसंक्रमको करके नपुंसकवेदके उपशम कर देनेपर इकीस-प्रकृतिक संक्रमस्थानका सात-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे संक्रम पाया जाता है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवमें इक्कीस-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान संभव है, क्योंकि अनन्तानुवन्धीकी विसंयोजनावाले उपशमसम्यग्दृष्टिके सासादनगुणस्थानको प्राप्त होनेपर उसकी प्रथम आवलीमे इक्कीस-प्रकृतिक संक्रमस्थानका संक्रम पाया जाता है। इसी गाथामे यह भी बतलाया गया है कि ये छहो ही प्रतिग्रहस्थान सम्यक्त्वपदसे संयुक्त गुणस्थानोमे पाये जाते है, अन्यत्र नहीं । यहॉपर दर्शनमोहनीयत्रिकके उदयाभावकी अपेक्षा सासादनगुणरथानको भी सम्यक्त्वी गुणस्थानमे उपचारसे परिगणित कर लिया गया है।
इन ऊपर कहे गये स्थानोंसे अवशिष्ट रहे हुए संक्रय और प्रतिग्रहस्थान उपशमक और क्षपक संयतके ही होते हैं । बीस-प्रकृतिक स्थानका संक्रय छह और पांच-प्रकृतिक दो प्रतिग्रहस्थानोंमें जानना चाहिए ॥३४॥
_ विशेषार्थ-उपर्युक्त गाथाओके द्वारा सत्ताईस, छब्बीस, पञ्चीस, तेईस, वाईस और इक्कीस-प्रकृतिक संक्रमस्थानोके प्रतिग्रहस्थानोका निरूपण किग जा चुका है। अब उनके अतिरिक्त जो सत्तरह संक्रमस्थान अवशिष्ट रहे है, उनके प्रतिग्रहस्थानाकी सूचना इस गाथाके द्वारा की गई है। इसमे सर्वप्रथम बतलाया गया है कि वीस आदिक अवशिष्ट संक्रमस्थान
और उनके छह, पाँच आदि प्रतिग्रहस्थान संयमसे युक्त गुणस्थानोमे ही होते है, अन्यत्र नहीं। संयम-युक्त गुणस्थानोमें भी वे उपशामक और क्षपकके ही सम्भव है, सबके नहीं, इस वातके वतलानेके लिए गाथामे 'उपशामक' और 'क्ष्पक' ये दो पद दिये है। उनमे भी वीसप्रकृतिक संक्रमस्थानका संक्रमण छह और पॉच-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे ही होता है, सबमे नहीं, यह वात गाथाके उत्तरार्ध द्वारा सूचित की गई है। इसका कारण यह है कि चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाले जीवके उपशमश्रेणीपर चढ़ करके नपुंसकवेद और स्त्रीवेदका उपशमन करके पुरुषवेदको प्रतिग्रह-प्रकृतिरूपसे व्युच्छिन्न कर देनेपर सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति
और संज्वलनचतुष्क, इन छह प्रकृतिरूप प्रतिग्रहस्थानमे वीस-प्रकृतिक संक्रमस्थानका संक्रम होता है। और इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले जीवके उपशमश्रेणीपर चढ़ करके आनुपूर्वीसक्रमके करनेपर वीस-प्रकृतिक संक्रमस्थानका संज्वलनचतुष्क और पुरुपवेदरूप पॉच-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे संक्रमण होता है।
१ एत्तो अविसेसा सकमति उवसामगे व खबगे वा।
उवसामगेमु वीसा य सत्तगे छक्क पणगे वा ॥ १७ ।। कम्मप० स०