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[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार
में होता है। तीन प्रकृतिक स्थानका संक्रम तीन और एक प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान में जानना चाहिए । दो- प्रकृतिक स्थानका संक्रम दो और एक प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान में होता है । एक प्रकृतिक स्थानका संक्रम एक प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान में जानना चाहिए ||३८||
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विशेषार्थ - इस गाथामे चार, तीन, दो और एक प्रकृतिरूप संक्रमस्थानां के प्रतिग्रहस्थानोका निर्देश किया गया है । उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - क्षपकके छह नोकपायोका क्षय हो जानेपर पुरुपवेद और तीन संज्वलनोका चार संज्वलनरूप प्रतिग्रहस्थानमे संक्रमण होता है । चौबीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामकके तीन मायाकपायोका उपगम हो जानेपर दो लोभ, सम्यग्मिध्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृतिरूप तीन प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे संक्रमण होता है । क्षपकके पुरुषवेदका क्षय हो जानेपर संज्वलनक्रोध, मान और मायाका संज्वलन मान, माया और लोभरूप तीन - प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे संक्रमण होता है । इक्कीस प्रकृतियो की सत्तावाले उपशामक के दो मायाकषायोका उपशम हो जानेपर एक माया और दो लोभ, इन तीन प्रकृतियोका एक संज्वलनलोभरूप प्रतिग्रहस्थानमे संक्रमण होता है । क्षपकके क्रोधका क्षय हो जानेपर संज्वलनमान और माया, इन दो प्रकृतियोका संज्वलन माया और लोभरूप दोप्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे संक्रमण होता है । अथवा चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामक के दो लोभकषायोका उपशम हो जानेपर मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दो प्रकृतियोका सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृतिरूप दो-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमे संक्रमण होता है। इक्कीस प्रकृतियो की सत्तावाले उपशासकके तीनो मायाकपायोका उपशम हो जानेपर दो लोभकपायोका एक संज्वलन लोभरूप प्रतिग्रहस्थान मे संक्रमण होता है । क्षपकके संज्चलनमानका क्षय हो जानेपर एक मायासंज्वलनका एक लोभसंज्वलनप्रकृतिरूप प्रतिग्रहस्थानमे संक्रमण होता है ।
संक्रमस्थानोके प्रतिग्रहस्थानोंका चित्र
सक्रमस्थान
२७
२६
२५
२३
२२
२१
२०
१९
१८
१४
१३
१२
प्रतिग्रहस्थान
२२, १९, १५, ११
२२, १९, १५, ११
२१, १७
२२, १९, १७, १५, ११
१८, १४, १०, ७
२१, १७, १३, ९, ७, ५
६, ५
५
४
६
६१
७)
कसाय पाहुड सुत्त
ܝ
४
सक्रमस्थान
११
१०
७
202.
४
३
२
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७.१
३
४,
४,
४,
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प्रतिग्रहस्थान
३
३.२
१