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गा० २२]
एकैकप्रकृतिसंक्रमण-स्वामित्व-निरूपण अपडिग्गहविही य' त्ति पयडि-अपडिग्गहो पयडिट्ठाण-अपडिग्गहो च । ३५. एस सुत्तफासो।
३६. एगेगपयडिसंकमे पयदं * ३७. एत्थ सामित्तं । ३८. मिच्छत्तस्स संकामओ को होइ ? ३९. णियमा सम्माइट्ठी । ४०. वेदगसम्माइट्ठी सव्यो । ४१. उवसामगो च णिरासाणो । ४२. सम्मत्तस्स संकामओ को होइ ? ४३. णियमा मिच्छाइट्ठी सम्मत्तसंतकम्मिओ। ४४. णवरि आवलियपविट्ठसम्मत्त संतकम्मियं वज्ज । है-प्रकृति-अप्रतिग्रह और प्रकृतिस्थान-अप्रतिग्रह । इस प्रकार प्रथम गाथाके द्वारा सूचित आठ निर्गमोका इस तीसरी गाथाके द्वारा गाथासूत्रकारने स्वयं नामोल्लेख कर दिया है। यह सूत्रस्पर्श है, अर्थात् गाथासूत्रोका पदच्छेदपूर्वक संक्षेपसे अर्थ किया गया है ॥३१-३५॥
___चूर्णिसू०-एकैकप्रकृतिसंक्रम प्रकृत है, अर्थात् प्रतिग्रह आदि अवान्तर भेदोके साथ एकैकप्रकृतिसंक्रमका निरूपण किया जायगा ॥३६॥
विशेषार्थ-इस एकैकप्रकृतिसंक्रमके चौबीस अनुयोगद्वार है-१ समुत्कीर्तना, २ सर्वसंक्रम, ३ नोसर्वसंक्रम, ४ उत्कृष्टसंक्रम, ५ अनुत्कृष्टसंक्रम, ६ जघन्यसंक्रम ७ अजघन्यसंक्रम, ८ सादिसंक्रम, ९ अनादिसंक्रम, १० ध्रुवसंक्रम, ११ अध्रु वसंक्रम, १२ एकजीवकी अपेक्षा स्वामित्व, १३ काल, १४ अन्तर, १५ नाना जीवोकी अपेक्षा भंगविचय, १६ भागाभाग १७ परिमाण, १८ क्षेत्र, १९ स्पर्श, २० काल, २१ अन्तर, २२ सन्निकर्ष, २३ भाव और २४ अल्पवहुत्व । इनमेसे समुत्कीर्तनाको आदि लेकर अ६ वसंक्रम तकके ग्यारह अनुयोगद्वारोका प्ररूपण सुगम एवं अल्प वर्णनीय होनेसे चूर्णिकारने नहीं किया है। विशेष जिज्ञासुओको जयधवला टीकासे जानना चाहिए ।
चूर्णिसू०-यहॉपर उक्त चौबीस अनुयोगद्वारोमेसे एक जीवकी अपेक्षा संक्रमणके स्वामित्वका निरूपण किया जाता है ॥३७॥
शंका-मिथ्यात्वका संक्रमण करनेवाला कौन जीव है १ ॥३८॥
समाधान-नियमसे सम्यग्दृष्टि है। संक्रमणके योग्य मिथ्यात्वकी सत्तावाले सर्व वेदकसम्यग्दृष्टि मिथ्यात्वका संक्रमण करते है। तथा निरासान अर्थात् आसादना या विराधनासे रहित सभी उपशमसम्यग्दृष्टि जीव भी मिथ्यात्वका संक्रमण करते है ॥३९-४१॥
शंका-सम्यक्त्वप्रकृतिका संक्रामक कौन जीव है ? ॥४२॥
समाधान-सम्यक्त्वप्रकृतिकी सत्ता रखनेवाला मिथ्यादृष्टि जीव नियमसे सम्यक्त्वप्रकृतिका संक्रामक होता है। केवल आवली-प्रविष्ट सम्यक्त्वसत्कर्मिक मिथ्यादृष्टि जीवको छोड़ देना चाहिए, अर्थात् जिसके एक आवलीकालप्रमाण ही सम्यक्त्वप्रकृतिकी सत्ता शेष रह
___ * तत्थ चउवीसमणियोगद्दाराणि होति । त जहा-समुक्त्तिणा सव्वसकमो पोसव्वसकमो उक्कस्ससकमो अणुकस्ससकमो जहण्णसकमो अजहण्णसकमो सादियसकमो अणादियसंकमो धुवसकमो अद्भुवसंकमो एकजीवेण सामित्त कालो अतर णाणाजीवेहि भगविचओ भागाभागो परिमाण खेत्त पोसण कालो अतर सण्णियासो भावो अप्पाबहुअ चेदि । जयध