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५ संकम-अत्थाहियारो
१. संकमे पयदं । २. संकमस्स पंचविहो उवकमा-आणुपुची णामं पमाणं वत्तव्वदा अत्थाहियारो चेदि । ३. एत्थ णिक्खेवो कायव्यो । ४. णामसंकमो ठवणसंकमो दव्यसंकमो खेत्तसंक्रमो कालसंकमो भावसंकमो चेदि । ५. णेगमो सब्वे
५ संक्रमण-अर्थाधिकार अब ग्रन्थकारके द्वारा पॉचवीं मूलगाथासे सूचित संक्रमण-नामक पाँचवें अर्थाधिकारका अवतार करते हुए यतिवृपभाचार्य उत्तर सूत्र कहते हैं
चूर्णिसू०-अव संक्रम प्रकृत है, अर्थात् संक्रमणका वर्णन किया जायगा ॥१॥
विशेषार्थ-इस संक्रमका अवतार उपक्रम, निक्षेप, नय और अनुगम इन चार • प्रकारोसे होता है; क्योकि, इनके विना संक्रम-विपयक यथार्थ ज्ञान नहीं हो सकता है । ____ अब चूर्णिकार सर्वप्रथम उपक्रमके द्वारा संक्रमका अवतार करते है
चूर्णिसू०-संक्रमका उपक्रम पांच प्रकारका है- आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार ॥२॥
विशेषार्थ-आनुपूर्वी-उपक्रम के तीन भेद हैं, उनमेसे पूर्वानुपूर्वीकी अपेक्षा यह संक्रमअधिकार कसायपाहुडके पन्द्रह अर्थाधिकारोमेसे पांचवां है । नाम-उपक्रमकी अपेक्षा 'संक्रम' यह गौण्यनामपद हैं, क्योकि, इसमे कर्मोंके संक्रमणका विस्तारसे वर्णन किया गया है । प्रमाणउपक्रमकी दृष्टि से इसका प्रमाण अक्षर, पद, संघात, प्रतिपत्ति और अनुयोगद्वारोकी अपेक्षा संख्यात है और अर्थकी अपेक्षा अनन्त है। वक्तव्यता-उपक्रमकी अपेक्षा संक्रमकी स्वसमयवक्तव्यता है । संक्रमका अर्थाधिकार चार प्रकारका है-प्रकृतिसंक्रम, स्थितिसंक्रम, अनुभागसंक्रम और प्रदेशसंक्रम । इस पांचवे अर्थाधिकारमे इन्ही चारो प्रकारके संक्रमोका विवेचन किया जायगा।
अब निक्षेप-उपक्रमका अवतार करते है
चूर्णिसू०-यहॉपर संक्रमका निक्षेप करना चाहिए। वह छह प्रकार का है-नामसंक्रम स्थापनासंक्रम, द्रव्यसंक्रम, क्षेत्रसंक्रम, कालसंक्रम और भावसंक्रम ॥३-४॥
अब नयोका अवतार करते हैं
चूर्णिसू०-नैगमनय उपयुक्त सर्व संक्रमणोको स्वीकार करता है। क्योकि, वह द्रव्य और पर्याय दोनोको ही विषय करता है। संग्रहनय और व्यवहारनय कालसंक्रमको छोड़ देते