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गा० ३२] . "
स्थितिक-स्वामित्व-निरूपण
२४१ उवसामणाए आवाहा जम्हि पुण्णा सा हिदी आदिट्ठा, तम्हि उक्स्सयमधाणिसेयहिदिपत्तयं । ५४. णिसेयहिदिपत्तयं च तम्हि चेव । ५५. उक्कस्सयमुदयट्ठिदिपत्तयं कस्स ? ५६. चरिमसमयकोहवेदयस्स ।
५७. एवं माण-माया-लोहाणं । ५८. पुरिसवेदस्स चत्तारि वि द्विदिपत्तयाणि कोहसंजलणभंगो। ५९. णवरि उदयहिदिपत्तयं चरिमसमयपुरिसवेदखवयस्स गुणिदकम्मंसियस्स । ६०. इस्थिवेदस्स उक्कस्सयमग्गद्विदिपत्तयं मिच्छत्तभंगो ।
६१. उक्कस्सय-अधाणिसेयहिदिपत्तयं णिसेयट्ठिदिपत्तयं च कस्स ? ६२. इस्थिवेदसंजदेण इत्थिवेद-पुरिसवेदपूरिदकम्मंसिएण अंतोमुहुत्तस्संतो दो वारे कसाए उवसामिदा । जाधे विदियाए उचसामणाए जहण्णयस्स हिदिबंधस्स पढमणिसेयद्विदी उदयं पत्ता ताधे अधाणिसेयादो णिसेयादो च उक्कस्सयं हिदिपत्तयं । ६३. उदयहिदिपत्तयमुक्कस्सयं कस्स ? ६४. गुणिदकम्मंसियस्स खवयस्स चरिमसमय-इत्थिवेदयस्स दूसरी वारकी उपशामनामे जिस समय आवाधा पूर्ण हो, वह स्थिति प्रकृतमे विवक्षित है । उस समयमे संज्वलनक्रोधका उत्कृष्ट यथानिषेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र होता है। इस ही जीवके उस ही समयमें संज्वलनक्रोधके निषेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाप्रका स्वामित्व जानना चाहिए ॥ ५३-५४ ॥
शंका-संज्वलनक्रोधका उत्कृष्ट उदयस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥५५॥
समाधान-चरम-समयवर्ती क्रोधवेदक क्षपकके संज्वलनक्रोधका उत्कृष्ट उदयस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र होता है ॥५६॥
चूर्णिसू०-इसी प्रकार संज्वलन मान, माया और लोभकपायके उत्कृष्ट अग्रस्थितिक आदि चारो प्रकारके प्रदेशाग्रोका स्वामित्व जानना चाहिए । पुरुपवेदके चारो ही स्थितिप्राप्तक प्रदेशाग्रोका स्वामित्व संज्वलनक्रोधके स्वामित्वके समान जानना चाहिए। केवल इतनी विशेपता है कि उदयस्थिति-प्राप्त प्रदेशाग्र गुणितकर्माशिक और चरमसमयवर्ती पुरुषवेदी क्षपकके होता है । स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अग्रस्थितिप्राप्तक प्रदेशाप्रका स्वामित्व मिथ्यात्वके समान जानना चाहिए ॥५७-६०॥
शंका-स्त्रीवेदका उत्कृष्ट यथानिपेकस्थिति-प्राप्त और निषेकस्थिति-प्राप्त प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥६१॥
समाधान-जिसने स्त्रीवेद और पुरुषवेदके कर्मप्रदेशाग्रको पूरित किया है, ऐसे स्त्रीवेदी संयतने अन्तर्मुहूर्त के भीतर दो वार कषायोका उपशमन किया । जब दूसरी उपशामनामें जघन्य स्थितिबन्धके प्रथम निषेककी स्थिति उदयको प्राप्त हुई, तब स्त्रीवेदका यथानिषेकसे और निषेकसे उत्कृष्ट स्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र होता है ॥६२॥
शंका-स्त्रीवेदका उत्कृष्ट उदयस्थिति-प्राप्त प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥६३॥
समाधान-गुणितकर्माशिक और चरमसमयवर्ती स्त्रीवेदक क्षपकके स्त्रीवेदका उद्यस्थितिको प्राप्त उत्कृष्ट प्रदेशाग्र होता है ॥ ६४ ॥
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