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कसाय पाहुड सुन्त
[ ७ स्थितिक अधिकार
७९. अताणुबंधीणं णिसेयादो अधाणिसेयादोच जहण्णयं द्विदिपत्तयं कस्स १ ८०. जो एइ दियट्टि दिसंतकम्मेण जहण्णएण पंचिदिए गओ, अंतोमुहुत्तेण सम्मत्तं पडि - वण्णो, अनंताणुबंधी विसंजोइता पुणो पडिवदिदो, रहस्सकालेण संजोएऊण सम्मत्तं पडिवण्णो, वे छावट्टिसागरोवमाणि अणुपालियूण मिच्छत्तं गओ । तस्स आवलियमच्छाइट्टिस्स जहण्णयं णिसेयादो अधाणिसेयादो चट्ठिदिपत्तयं । ८१. उदयट्ठिदिपत्तयं जहण्णयं कस्स १८२. एह दियकम्मेण जहण्णएण तसेसु आगदो, तम्हि संजमा संजमं संजमं च बहुसो लट्टू चत्तारि वारे कसाए उवसामित्ता एड दिए गओ, असंखेजाणि चस्साणि अच्छियूण उवसामय समयपवद्ध सु गलिदेसु पंचिदिएस गदो । अंतोमुहुत्तेण अनंताणुबंधी विसंजोइता तदो संजोएऊण जहण्णएण तो मुहुत्तेण पुणो सम्मत्तं लद्घृण वे छावसिागरोमाणि अनंताणुवंधिणो गालिदा । तदो मिच्छत्तं गदो । तस्स आवलियमिच्छा डिस्स जहण्णयमुदयडिदिपत्तयं ।
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८३. वारसकसायाणं णिसेयडि दिपत्तयमुदयट्ठिदिपत्तयं च जहणणयं कस्स १ शंका- अनन्तानुबन्धी चारो कपायोका निषेकसे और यथानिषेकसे जघन्य स्थिति-प्राप्त प्रदेश किसके होता है १ ।। ७९ ।।
समाधान - जो जीव जघन्य एकेन्द्रियस्थितिसत्कर्म के साथ पंचेन्द्रियोमे उत्पन्न हुआ और अन्तर्मुहूर्तके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । पुनः अनन्तानुबन्धी कषायोका विसंयोजन करके गिरा और ह्रस्व ( सर्वं लघु ) कालसे अनन्तानुबन्धी कपायोका पुन: संयोजन किया । पुनः अति लघु अन्तर्मुहूर्त से सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । मिथ्यात्वको प्राप्त होने के एक आवली - कालके पश्चात् उस मिध्यादृष्टि जीवके अनन्तानुवन्धी कषायोका निपेकसे और यथानिपेकसे जघन्य स्थितिको प्राप्त प्रदेशाय होता है ॥ ८०॥
शंका- अनन्तानुबन्धी कषायोका जघन्य उदयस्थितिको प्राप्त प्रदेशाय किसके होता है ? ।। ८१ ।।
समाधान - जो जीव जघन्य एकेन्द्रिय सत्कर्मके साथ सोमे उत्पन्न हुआ । वहाँ पर संयमासंयम और संयमको बहुत वार प्राप्त करके, तथा चार वार कषायोको भी उपशमा करके एकेन्द्रियोमें चला गया । वहॉपर असंख्यात वर्ष तक रहकर उपशामक - समयप्रबद्धो के गल जानेपर पंचेन्द्रियोमे आया । अन्तर्मुहूर्त से अनन्तानुवन्धी कपायका विसंयोजन करके पुनः लघुकाल से संयोजन कर, पुनः जघन्य अन्तर्मुहूर्तसे सम्यक्त्वको प्राप्तकर दो वार छयासठ सागरोपम काल तक सम्यक्त्वका परिपालन किया और अनन्तानुबन्धीके समयप्रबद्धोको गला दिया । तदनन्तर वह मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ । तब उस आवली - प्रविष्ट मिथ्यादृष्टि के अनन्तानुबन्धी कषायोका जघन्य उदयस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र होता है ॥ ८२ ॥
शंका- अप्रत्याख्यानावरणादि वारहं कषायोका निषेकस्थिति प्राप्त और उदयस्थितिप्राप्त जघन्य प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥ ८३ ॥