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कलाय पाहुन सुरु [७ स्थिनिक अधिकार ९३. उक्स्सयमधाणिसेयविदिपत्तयमसंखेज्जगुणं । ९४. णिसेयविदिपत्तयमुक्कस्सयं विसेसाहियं । ९५. उदयहिदिपत्तयमुक्कस्सयमसंखेजगुणं * |
९६. जहण्णयाणि कायवाणि । ९७. सव्वत्थोवं मिच्छत्तस्स जहण्णयमग्गद्विदिपत्तयं । ९८. जहण्णयं णिसेयट्ठिदिपत्तयं अणंतगुणं । ९९. जहण्णय मुदयट्ठिदिपत्तयं असंखेजगुणं । १००. जहण्णयमधाणिसेयहिदिपत्तयमसंखेज्जगुणं । १०१. एवं सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-धारसकसाय-पुरिसवेद-हस्स-रह-भय-दुगुंछाणं । १०२. अणंताणुबंधीणं सव्वत्थोवं जहण्णयमग्गहिदिपत्तयं । १०३. जहण्णयमधाणिसेयहिदिपत्तयमणंतगुणं । १०४. [ जहण्णयं ] णिसेयहिदिपत्तयं विसेसाहियं । १०५ जहण्णय मुदयविदिपत्तयमसंखेज्जगुणं । १०६. एवमित्थिवेद-ण_सयवेद-अरदि-सोगाणं । कहते हैं-मिथ्यात्व आदि सर्व प्रकृतियोके उत्कृष्ट अग्रस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र सबसे कम है । उत्कृष्ट अग्रस्थितिप्राप्त प्रदेशाग्रोसे उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र असंख्यातगुणित है । उत्कृष्ट यथानिपेकस्थिति-प्राप्त प्रदेशाप्रोसे उत्कृष्ट निपेकस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र विशेप अधिक है। उत्कृष्ट निपेकस्थिति-प्राप्त प्रदेशाग्रोसे उत्कृष्ट उदयस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशान असंख्यातगुणित है ॥९१-९५॥
चूर्णिसू०-अव जघन्य स्थितिको प्राप्त अग्रस्थितिक आदिके प्रदेशाग्रोंका अल्पवहुत्व कहना चाहिए । मिथ्यात्वका जघन्य अपस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र वक्ष्यमाण पदोकी अपेक्षा सबसे कम है। क्योकि, वह एक परमाणुप्रमाण है। मिथ्यात्वके जघन्य अग्रस्थिति-प्राप्त प्रदेशाग्रसे उसीका जघन्य निषेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाय अनन्तगुणित है । क्योकि, वह अनन्त परमाणु-प्रमाण है। मिथ्यात्वके जघन्य निषेकस्थिति-प्राप्त प्रदेशाग्रसे उसीफा जघन्य उदयस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र असंख्यातगुणित है। मिथ्यात्वके जघन्य उदयस्थिति-प्राप्त प्रदेशाग्रसे उसीका जवन्य यथानिपेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र असंख्यातगुणित है । इसी प्रकार सम्यक्त्वप्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, अप्रत्याख्यानावरणादि बारह कपाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय और जुगुप्साके अग्रस्थितिक आदि चारोका अल्पवहुत्व जानना चाहिए ॥९६-५०१।।
चूर्णिसू०-अनन्तानुवन्धीकषायोका जघन्य अग्रस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र वक्ष्यमाण पदोकी अपेक्षा सबसे कम है। इन्हीं कपायोके जघन्य अग्रस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्रसे इनके ही जघन्य यथानिपेकस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र अनन्तगुणित हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य यथानिषेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्रसे इन्हीके (जघन्य) निषेकस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र विशेष अधिक है। अनन्तानुवन्धीचतुष्कके (जघन्य) निषेकस्थिति प्राप्त कर्मप्रदेशाप्रोसे इन्हींके जघन्य उदयस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र असंख्यातगुणित हैं । इसी प्रकारसे स्त्रीवेद, नपुंसक वेद,
* ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'असखेजगुण' के स्थान पर 'विसेसाहिय' पाठ मुद्रित है । ( देखो पृ° ९५२ ) । पर इस सूत्रकी ही टीकाको देखते हुए वह स्पष्टरूपसे अशुद्ध है, क्योंकि टोकामे 'असख्यात. गुणित' गुणाकारका स्पष्ट उल्लेख है । ( देखो पृ० ९५३)