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कसाय पाहुड सुत्त [७ स्थितिक अधिकार ताणुबंधिचउक्क-अट्ठकसाय-छण्णोकसायाणं मिच्छत्तभंगो । ४४. णवरि अढकसायाणमुक्कस्सयमुदयविदिपत्तयं कस्स ? ४५. संजमासंजम-संजम-दसणमोहणीयक्खवयगुणसेढीओ त्ति एदाओ तिणि वि गुणसेढीओ गुणिदकम्मंसिएण कदाओ । एदाओ काऊण अविणद्वेसु असंजमं गओ । पत्तेसु उदयगुणसेडिसीसएसु उक्कस्सयमुदयट्ठिदिपत्तयं ।।
४६. छण्णोकसायाणमुक्कस्सयमुदयहिदिपत्तयं कस्स ? ४७. चरिमसमयअपुव्वकरणे वट्टमाणयस्स । ४८. हस्स-रह-अरइ-सोगाणं जइ कीरइ भय-दुगुंछाणमवेदओ कायव्यो । ४९ जइ भयस्स, तदो दुगुंछाए अवेदओ काययो । अध दुगुंछाए, तदो भयस्स अवेदओ कायनो ।
५०. कोहसंजलणस्स उकस्सयमग्गद्विदिपत्तयं कस्स १ ५१. उक्कस्सयमग्गद्विदिपत्तयं जहा पुरिमाणं कायव्यं । ५२. उक्स्सयमधाणिसेयढिदिपत्तयं कस्स १५३. कसाए उवसामित्ता पडिवदिदूण पुणो अंतोमुहुत्तेण कसाया उवसामिदा, विदियाए
शंका-आठ मध्यम कपायोका उत्कृष्ट उदयस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र किसके होता
समाधान-जिस गुणितकर्माशिक जीवने संयमासंयमगुणश्रेणी, संयमगुणश्रेणी और दर्शनमोहनीय-क्षपकगुणश्रेणी इन तीनो ही गुणश्रेणियोको किया । पुनः इनको करके उनके नष्ट नहीं होनेके पूर्व ही वह असंयमको प्राप्त हुआ। वहाँ उन गुणश्रेणियोके शीर्षकोके उद्यको प्राप्त होनेपर आठो मध्यम कपायोका उत्कृष्ट उदयस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र होता है ॥ ४५ ॥
शंका-छह नोकषायोका उत्कृष्ट उदयस्थितिप्राप्त प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥४६॥
समाधान-अपूर्वकरण गुणस्थानके अन्तिम समयमे वर्तमान क्षपकके छह नोकपायोका उत्कृष्ट उद्यस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र होता है । यहाँ इतना विशेप ज्ञातव्य है कि जब हास्य-रति और अरति-शोककी प्ररूपणा की जाय, तब उसे भय और जुगुप्साका अवेदक निरूपण करना चाहिए । यदि भयकी प्ररूपणा की जाय, तो जुगुप्साका अवेदक कहना चाहिए और यदि जुगुप्साकी प्ररूपणा की जाय, तो उसे भयका अवेदक निरूपण करना चाहिए ॥४७-४९ ॥
शंका-संज्वलनक्रोधका उत्कृष्ट अग्रस्थितिक कर्मप्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥५०॥
समाधान-जिस प्रकारसे पूर्ववर्ती मिथ्यात्वादि कर्मोके उत्कृष्ट अग्रस्थिति-प्राप्त प्रदेशाग्रके स्वामित्वको कहा है, उसी प्रकारसे संज्वलनक्रोधके उत्कृष्ट अग्रस्थिति-प्राप्त करेंप्रदेशाग्रके स्वामित्वकी प्ररूपणा करना चाहिए ॥ ५१ ॥
शंका-संज्वलनक्रोधका उत्कृष्ट यथानिपेकको प्राप्त प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥५२॥
समाधान-जो कषायोंका उपशमन करके गिरा और उसने पुनः अन्तमुहूतसे कपायोका उपशमन किया। (तदनन्तर वही जीव नरक-तिर्यंच गतिमें दो-तीन भवोको ग्रहण करके पुनः मनुष्य हुआ और कषायोके उपशमनके लिए उद्यत हुआ।) इस दूसरे भवमै