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मभिवण बंधदि हेठिल्लीला जदा आउ धामिक्वं गदो। त
१८८ कसाय पाहुड सुत्त
[५ प्रदेशविभक्ति पक्खित्ता ताधे लोभसंजलणस्स उक्कस्सयं पदेससंतकस्म ।
२०. मिच्छत्तस्स जहण्णपदेससंतकस्मिओ को होदि ? २१. सुहमणिगोदेसु कम्पढिदिमच्छिदाउओ। तत्थ सव्वबहुआणि अपज्जत्तभवग्गहणाणि दीहाओ अपज्जत्तद्धाओ तप्पाओग्गजहण्णयाणि जोगहाणाणि अभिवस्वं गदो। तदो तप्पाओग्गजहण्णियाए वड्डीए वलिदो जदा जदा आउअं बंधदि तदा तदा तप्पाओग्गउक्कस्सएसु जोगट्ठाणेसु बंधदि हेठिल्लीणं द्विदीणं णिसेयस्स उकस्सपदेसं तप्पाओग्गं उकस्सविसोहिमभिक्खं गदो, जाधे अभवसिद्धियपाओग्गं जहण्णगं कम्मं कदं तदो तसेसु आगदो संजमासंजमं संजमं सम्मत्तं च बहुसो लद्धो । चत्तारि वारे कसाए उत्सामित्ता तदो वे छावद्विसागरोवमाणि सम्मत्तमणुपालेदूण तदो दसणमोहणीयं खवेदि । अपच्छिमहिदिखंडयमवणिज्जमाणयमवणिदभुदयावलियाए जंतं गलमाणं तं गलिदं, जाधे एकिस्से द्विदीए दुसमयकालट्ठिदिगं सेसं ताधे मिच्छत्तस्स जहण्णयं पदेससंतकम्म । लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है ॥ १६-१९ ॥
चूर्णिसू० -मिथ्यात्वकर्मका जघन्य प्रदेशसत्कर्म करनेवाला कौन जीव होता है ? जो सूक्ष्म निगोदिया जीवोमें कर्मस्थिति-कालप्रमाण तक रहा हुआ है और वहॉपर अपर्याप्तके सव सबसे अधिक ग्रहण किये, अपर्याप्तका काल दीर्घ रहा और उनके योग्य जघन्य योगस्थानोको निरन्तर प्राप्त हुआ है । तदनन्तर तत्प्रायोग्य जघन्य वृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त होता हुआ जव-जब आयुको बॉधता है, तब तव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योगस्थानोंमें आयुको बॉधता है
और अधस्तन स्थितियोमे निपेकको उत्कृष्ट प्रदेशवाला किया और तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिफो निरन्तर प्राप्त हुआ है, ऐसे इस जीवने जिस समय अभव्यसिद्धिकोके योग्य जघन्य कर्मफो उपार्जन किया तब उस जीवोमे आया । वहॉपर संयमासंयम, संयम और सम्यग्दर्शनको बहुत वार प्राप्त हुआ। चार वार कपायोको उपशमा कर तदनन्तर असंयमको प्राप्त हो दो वार छयासठ सागरोपम काल तक सम्यक्त्वको परिपालन कर तत्पश्चात् दर्शनमोहनीयकर्मका क्षपण करता है । उस समय जब अपनीत होने योग्य मिथ्यात्वकर्मका अन्तिम स्थितिखंड
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१ तस्सेव जम्मि समये मायासंजलणा लोभसंजलणाए सवसकमेण सकता भवति तम्मि समये लोभसजलणाए से उक्कोस पदेससत | कम्म० सत्ता गा० ३१, चू० पृ० ५९.
२ वेयणाए पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेणूणियं कम्मििद सुहुमेइदिएनु हिंडाविय तसका. इएसु उप्पाइदो । एत्थ पुण कम्मछिदि सपुण्णं भमाडिय तसत्त णीदो । तदो दोण्ह सुत्ताण जहा-विरोहो तहा वत्तव्यमिदि । जइवसहाइरिओवएसेण खविदकम्मसियकालो कम्महिदिमेत्तो। 'सुहुमणिगोदेसु कम्मट्टिदिमच्छिदाउओ' त्ति सुत्तणिद्देसण्णहाणुववत्तीटो । भूदवलिभादरियोवएसेण पुण खविदकम्मसियकालो कम्महिदिमेत्तो पलिदोवमत्स असंखेजदिभागेशृण | एटेसिं दोण्हमुवदेसाण माझे सच्चेणेकणेव होदव्यं । तत्य सञ्चत्तणेगदरणिण्णओ त्यि त्ति दोण्ह पि सगहो काययो । जयध०
३खवियंसयम्मि पगयं जहन्नगे नियगसंतकम्मं ॥३९॥ (चू०)xx जहन्नगं मंतकम्मं XX अप्पप्यणो संतकम्मन्म अते भवति । यम्म० मना० ० ६२.