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गा० २२] मीण-अक्षीणस्थितिक-स्वामित्व-निरूपण दियाणि एदस्स चेव, तिपलिदोवमिए सु णो उववण्णयम्स कायव्याणि ।
११६. णqसयवेदस्स जहण्णयमुदयादो झीणहिदियं कस्म ? ११७. सुहुमणिगोदेसु कम्पट्टिदिमणुपालिघूण तसेसु आगदो, संजमासंजमं संजमं सम्मत्तं च बहुसो गओ, चत्तारि वारे कसाए उवसामित्ता तदो एइदिए गदो। पलिदोवमस्सासंखेजदिभागमच्छिदो ताब, जाव उवसामयसमयपबद्धा णिग्गलिदा त्ति । तदो पुणो मणुस्सेसु आगदो पुनकोडी देसूणं संजममणुपालियूण अंतोमुहत्तसेसे मिच्छत्तं गदो दसवरससहस्सिएसु देवेसु उववण्णो । अंतोमुहुत्तमुववण्णेण सम्मत्तं लद्ध, अंतोमुहुत्तावसेसे जीविदव्यए त्ति मिच्छत्तं गदो। तदो* वि ओकड्डिदाओ [ विकड्डिदाओ ] द्विदीओ तप्पाओग्गसव्वरहस्साए मिच्छत्तद्धाए एइदिएसुववणो । तत्थ वि तप्पाओग्गउ कस्सयं संकिलेसं गदो। तस्स पढगसमयएइ दियस्स जहण्णयमुदयादो झीणहिदियं ।।
र ११८. इत्थिवेदस्त जहण्णयमुदयादो झीणहिदियं कस्स ? ११९. एसो चेव नपुंसकवेदका अपकर्पणादि तीनोकी अपेक्षा जघन्य क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र होता है । म्रीवेटका अपकर्पणादि तीनोकी अपेक्षा जघन्य क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र भी इसी उपयुक्त जीवके होता है। भेद केवल यह है कि इसे तीन पल्योपमकी आयुवाले जीवोमे नहीं उत्पन्न कराना चाहिए ॥ ११४-११५॥
शंका-नपुंसकवेदका उदयकी अपेक्षा श्रीणस्थितिक प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥११६॥
समाधान-जो जीव सूक्ष्म निगोदिया जीवामे कर्मस्थितिकाल तक रह करके सोमे आया और संयमासंयम, संयम तथा सम्यक्त्वको बहुत वार प्राप्त किया। चार वार कपायोका उपशमनकर तदनन्तर एकेन्द्रियोमे उत्पन्न हुआ। पल्योपमके असंख्यातवे भाग काल तक वहाँ रहा, जब तक कि उपशामकसम्बन्धी समयप्रबद्ध पूर्णरूपसे गलित हो गये । तदनन्तर वह मनुष्योगे आया और देगोन पूर्वकोटीकाल तक संयमको परिपालनकर आयुके अन्तर्मुहूर्त शेप रह जानेपर गिथ्यात्वको प्राप्त हुआ और मरकर दश हजार वर्षकी आयुवाले देवोमे उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होनेके अन्तर्मुहूर्त पश्चात् सम्यक्त्वको प्राप्त किया और जीवितव्यके अन्तर्मुहर्त शेप रह जानेपर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् वहॉपर पूर्वबद्ध और सत्तामे स्थिन सर्व कर्मोकी स्थितियोका उत्कर्पण कर और उन्हें अतिदूर निक्षिप्त करके तत्प्रायोग्य अर्थात् एकेन्द्रियोमे उत्पत्तिके योग्य सर्वहत्व मिथ्यात्वकालके रह जानेपर एकेन्द्रियोंमे उत्पन्न हुआ। वहॉपर भी तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ । उस प्रथमग्नमयवर्ती एकेन्द्रिय जीवक नपुंसकनेटका उदयकी अपेक्षा जघन्य श्रीणस्थितिक प्रदेशाग्र होता है ॥ ११७ ।।
शंका-स्त्रीवेदमा उदयकी अपेक्षा जघन्य श्रीणस्थितिक प्रदेगान किसके होता है ? ॥११८॥
र तामपाताली प्रतिगे 'तदो' पद माँ है । ( देतो ० ९२१)।
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