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कसाय पाहुड लुत्त
[ ६ क्षीणाक्षीणाधिकार
बहुसो लभिदाउओ चत्तारि वारे कसाए उवसामेण तदो अगंताणुबंधी विसंजोएऊण संजोइदो | तदो वे छावट्टिसागरोवमाणि सम्यत्तमणुपालेपूण तदो मिच्छत्तं गदो तस्स पढमसमयमिच्छाइडिस्स जहण्णयं तिण्हं पि झीणडिदियं । ११२ तस्सेच आवलियसमयमिच्छास्सि जहण्णयमुदयादो झीणडिदियं ।
११३. वुंसयवेदस्स जहण्णयमोकडणादितिण्हं पिझीणट्ठिदियं कस्स १११४. अभवसिद्धियपाओग्गेण जहण्णएण कस्मेण तिपलिदोवमिएस उववण्णो । तदो अंतोहुत्त सेसे सम्मत्तं लद्ध, वे छावट्टिसागरोवमाणि सम्मत्तमणुपालिद, संजमा संजमं संजमं च बहुसो | गदो । चत्तारि वारे कसाए उवसामित्ता अपच्छिमे भवे पुव्वको डिआउओ मस्सो जादो । तदो देणपुव्वको डिसंजम मणुपा लियूण अंतोमुहुत्त से से परिणामपच्चएण असंजयं गदो । ताव असंजदो जाब गुणसेढी णिग्गलिदा ति । तदो संजमं पडिवजियूण अंतोमुहुत्ते कम्मक्खयं काहिदि ति तत्स पडमसमय संजयं पडिवण्णस्स जहयं तिहं पिझीणडिदियं । ११५. इत्थवेदस्स वि जहण्णयाणि तिष्णिवि झीपट्टि -
वहाँसे निकल करके संयमासंयम और संयमको बहुत बार प्राप्त किया, तथा चार वार कषायोका उपासनकर तदनन्तर अनन्तानुबन्धीका विसंयोजनकर और पुनः अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् ही उसका संयोजन किया । तदनन्तर दो वार छयासठ सागरोपमकाल तक सम्यक्त्वको परिपालन कर पुनः मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ, उस प्रथमसमयवर्ती मिध्यादृष्टि के अनन्तानुवन्धी कपायोका अपकर्षणादि तीनोकी अपेक्षा जघन्य क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र होता है । उस ही जीवके मिध्यादृष्टि होने के एक आवलीकालके अन्तिम समयमे अनन्तानुबन्धीकपायोका उदयकी अपेक्षा जवन्य क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र होता है ॥ १११-११२॥
शंका- नपुंसकवेदका अपकर्षणादि तीनोकी अपेक्षा जवन्य क्षीणस्थितिक प्रदेशाम किसके होता है ? ॥ ११३॥
समाधान - जो अभव्यसिद्धिको के योग्य जघन्य सत्कर्मके द्वारा तीन पल्योपमवाले भोगभूमियाँ जीवोमे उत्पन्न हुआ । तत्पश्चात् जीवन के अन्तर्मुहूर्त शेप रह जानेपर सम्यक्त्वको प्राप्त किया और दो वार छयासठ सागरोपमकाल तक सम्यक्त्वका अनुपालन किया, तथा संयमासंयम और संयमको बहुत वार धारण किया। चार वार कपायोका उपशमनकर अन्तिम भव पूर्वकोटी वर्षकी आयुका धारक मनुष्य हुआ । तदनन्तर देशोन पूर्वकोटीकालप्रमाण संयमका परिपालनकर आयुके अन्तर्मुहूर्त शेष रह जानेपर परिणामो के निमित्तसे असंयमको प्राप्त हुआ और गुणश्रेणी के पूर्णरूपसे गलित होने तक असंयत रहा । तत्पश्चात् संयमको जीवके प्राप्त होकर अन्तर्मुहूर्तसे जो कर्मोंका क्षय करेगा, उस प्रथम समयमे संयमको प्राप्त हुए
ताम्रपत्रवाली प्रतिमे 'विसजोएलण' के खानपर 'विसेजोएड' ऐसा पाठ मुद्रित है, जो कि टीका और अर्थ के अनुसार अशुद्ध है । ( देखो पृ० १०७ )
* ताम्रपत्रवाली प्रतिगें 'बहुमो' पद नहीं है । ( टेली पृ० १०९ ) ।