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कसाय पाहुड सुत्त [७ स्थितिक-अधिकार समयपबद्धस्स अधाणिसेओ णियमा अस्थि ।
२३. एक्कस्स समयपबद्धस्स एक्किस्से द्विदीए जो उक्कस्सओ अधाणिसेओ तत्तो केवडिगुणं उकस्सयमधाणिसेयट्ठिदिपत्तयं ? २४. तस्स णिदरिसणं । २५. जहा । २६. ओकड्डक्कडणाए कम्मरस अवहारकालो थोवो | २७. अधापवत्तसंक्रमेण कम्मस्स अवहारकालो असंखेज्जगुणो । २८. ओकड्डुक्कड्डणाए कम्मस्स जो अवहारकालो सो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। २९. एवदिगुणमेकस्स समयपवद्धस्स एकिस्से द्विदीए उक्कस्सयादो जहाणिसेयादो उक्कस्सयमधाणि सेयहिदिपत्तयं ।
३०. इदाणिमुक्कस्सयमधाणिसेयहिदिपत्तयं कस्स ? ३१. सत्तमाए पुडवीए णेरड्यस्स जत्तियमधाणिसेयट्ठिदिपत्तयमुक्कस्सयं तत्तो विसेसुत्तरकालमुववण्णो जो रहओ तस्स जहण्णेण उक्कस्सयमधाणिसेयढिदिपत्तयं ३२. एदम्हि पुण काले सो रइओ तप्पाओग्गुकस्सयाणि जोगहाणाणि अभिक्खं गदो । ३३. तप्पाओग्गउक्कस्सियाहि वड्डीहि
शंका-विवक्षित स्थितिसे एक समय अधिक जघन्य आवाधाकालप्रमाण नीचे आकर उत्कृष्ट योगसे बँधा हुआ जो एक समयप्रबद्ध है, उसकी एक स्थितिमे अर्थात् जघन्य आवाधाके वाहिर स्थित स्थितिमे जो उत्कृष्ट यथानिपेक प्रदेशाग्र है, उससे पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण अपने उत्कृष्ट संचयकालके भीतर गलनेसे अवशिष्ट रहे हुए नानासमयप्रबद्धोका जो यथानियेकस्थितिको प्राप्त हुआ उत्कृष्ट प्रदेशाग्र है, वह कितना गुणा अधिक है ? ।।२३।।
समाधान-इस गुणाकारको एक निदर्शन ( उदाहरण ) के द्वारा स्पष्ट करते है। वह इस प्रकार है-एक समयमे जो कर्मप्रदेशाग्र उद्वर्तना-अपवर्तनाकरणके द्वारा उद्वर्तित या अपवर्तित होता है. उसके प्रमाण निकालनेका जो अवहारकाल है, वह वक्ष्यमाण अवहारकालसे थोड़ा है। उद्वर्तनापवर्तनाकरणके अवहारकालसे अधःप्रवृत्तसंक्रमणकी अपेक्षा कर्मका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। उद्वर्तनापवर्तनाकरणकी अपेक्षा कर्मका जो अवहारकाल है, वह पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण है। इतना गुणा है, अर्थात् एक समयप्रबद्धकी एक स्थितिके उत्कृष्ट यथानिकसे उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशात्र जितना यह उद्वर्तनापवर्तनाकरणकी अपेक्षा कर्मका अवहारकाल है, इतना गुणा अधिक है ॥२४-२९॥
शंका-उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥ ३० ॥
समाधान-वह उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र सातवी पृथिवीके नारकीके होता है। किस प्रकारके नारकीके होता है, इसका स्पष्टीकरण यह है कि जितना काल उत्कृष्ट यथानिपकस्थितिप्राप्त प्रदेशाग्रका है, उससे उत्तरकालमै उत्पन्न हुआ जो नारकी है, उसके उत्पत्तिके समयसे जघन्य अन्तर्मुहर्तसे अधिक होनेपर, अर्थान सर्वलघुकालसे पर्याप होनेपर, उत्कृष्ट यथानिक स्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र होता है। पुनः वह नारकी दम यथानिपेकमंचयकालके भीतर तत्प्राचान्य उत्कृष्ट योगम्थान को बार-बार प्राप्त हुआ, नथा तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट वृद्वियोले वृद्धिको प्राप्त होता हुआ उस स्थितिके निपेकके उत्कृष्ट पदको प्राप्त हुआ।