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गा० २२ ]
स्थितिक- स्वामित्व निरूपण
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दो | ३४. तिस्से दीए णिसेयस्स उक्कस्सपदं । ३५. जा जहणिया आवाहा अंतोमुहुत्तुत्तरा एवदिसमय-अणुदिष्णा साट्ठिदी । तदो जोगट्टाणाणमुवरिल्लमद्ध गदो ३६. दुसमयाहिय - आवाहाचरिमसमयअणुदिण्णाए एयसमयाहिय - आवाहाचरिमसमयअणुदिण्णाए च उक्तस्तयं जोगमुवबण्णो । ३७ तस्स उकस्सयमधाणिसेय डिदिपत्तयं । ३८. णिसेय दिपत्तयं पि उक्कस्यं तरसेव ।
३९ उदयट्ठिदिपत्तयमुकस्सयं कस्स १४० गुणिदकम्मं सिओ संजमा संजमगुणसे संजमगुणसेटिं च काऊण मिच्छत्तं गदो जाधे गुणसेढीसीसयाणि उदिष्णाणि ताधे मिच्छत्तस्स उक्कस्तयमुदय द्विदिपत्यं । ४१. एवं सम्मत्त सम्मामिच्छताणं पि । ४२. वरि उस्समुदयट्ठिदिपत्तयमुकस्सयमुदयादो झीणडिदियभंगो । ४३. अणंजो अन्तर्मुहूर्त-अधिक जघन्य आवाधा है, इतने समय तक वह स्थिति अनुदीर्ण थी, अर्थात् उदयको प्राप्त नही हुई थी । तदनन्तर वह नारकी योगस्थानोंके ऊपरी अर्धभागको प्राप्त हुआ, अर्थात् यवमध्यके ऊपर जाकर अन्तर्मुहूर्तकाल तक रहा । पुनः उस स्थिति के दो समय अधिक आवाधाके अन्तिम समयमे अनुदीर्ण होनेपर और एक समय अधिक आवाधाके अन्तिम समयमे अनुदीर्ण होनेपर वह उत्कृष्ट योगको प्राप्त हुआ । ऐसे उस नारकी के मिथ्यात्वका उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाय होता है । तथा उसीके ही निपेकस्थितिको प्राप्त उत्कृष्ट प्रदेशाग्र होता है ।। ३१-३८ ॥
भावार्थ- जो जीव सातवे नरकमे उत्पन्न हुआ, लघु अन्तर्मुहूर्त से पर्याप्त हुआ, स्व-योग्य योगस्थानोसे निरन्तर परिणत हुआ, संख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात भागवृद्धि इन दो वृद्धियोसे बढ़ा, योगवृद्धिसे योगस्थानोके यवमध्यभागको प्राप्त होकर वहाँ अन्तर्मुहूर्त काल तक रहा । जब दो समय और एक समय अधिक आवाधाका चरम समय आया, तब उत्कृष्ट योगको प्राप्त हुआ, ऐसे जीवके मिथ्यात्वका उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिक प्रदेशाग्र होता है और इसी नारकी के ही उत्कृष्ट निपेकस्थितिक प्रदेशाय पाया जाता है ।
शंका-मिथ्यात्वफा उदयस्थितिको प्राप्त उत्कृष्ट प्रदेशाय किसके होना है ? ॥३९॥ समाधान - जो गुणितकर्माशिक जीव संयमासंयमगुणश्रेणीको और संयमगुणश्रेणीको करके मिथ्यात्वको ग्राप्त हुआ । उसके जिस समय गुणश्रेणीशीर्षक उदयको प्राप्त हुए उस समय उसके मिथ्यात्वका उदयस्थितिको प्राप्त उत्कृष्ट प्रदेशाम्र होता है ॥ ४० ॥
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चूर्णिम् ० - इसी प्रकार से अर्थान मिध्यात्वके समान ही सम्यक्त्वप्रकृति और समयमिथ्यात्वके उत्कृष्ट अग्रस्थिति प्राप्त, यथानिपेकस्थिति प्राप्त आदिके स्वामित्वको जानना चाहिए | विशेषता केवल यह है कि इन दोनों प्रकृतियोंके उत्कृष्ट उदयस्थिति प्राप्त प्रदेशायका स्वामित्व की अपेक्षा उत्कृष्ट क्षीणम्थितिक प्रदेश के स्वामित्वके नमान । अनन्तानुबन्धी चतुष्क, आठ मध्यम कपाय और हाम्यादि छह नोकपायोके उत्कृष्ट अग्रन्थिति आदियो प्राप्त प्रदेशका स्वामित्व मिध्यात्व के स्वामित्व के समान जानना चाहिए ।। ११-१३ ॥